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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। / पढमो परिच्छेओ। // 7 // | सो समाणजोव्वणरूवाइसएहिं वरवयंसेहिं / परियरिओ आहिंडइ ईसरलील विडंबतो // 184 // अह अन्नया कयाइवि वैयंसविसरेण * परिगओ एसो / नयराओ नीहरिओ पत्तो य मणोरमुजाणे // 185 / / दिट्ठो य तत्थ एगो पुरिसो गुरुसोयपरिगओ तेण / वावीतडो वविट्ठो अंसुजलोहलियगंडयलो // 186 // धणदेवो तं दटुं पुरिसं उप्पन्नगरुयकारुण्णो / आसन्ने गंतूणं महुरगिराए इमं भणति | // 187 // को सि तुमं कत्तो वा किंवा ते सोयकारण भद्द ! 1 / एवं च तेण भणिओ सो पुरिसो एवमुल्लवइ // 188 // कह तम्मि वञ्जरिजइ दुक्खं गुरुदुक्खपीडियमणेहिं / न कुणइ जो पडियारं न य दुहिओ अहव जो होइ ? // 189 // तहवि हु कहेमि सुंदर! | मा वयणं तुज्झ निष्फलं जाउ / सीहगुहानामेणं अइविसमा अत्थि पल्लित्ति // 190 // तीए य सुपइट्ठो पल्लिवई तस्स भारिया लच्छी। | तीए पुत्तो जाओ जयसेणो जणमणाणंदो // 191 // तस्स य बालग्गाहो अहयं नामेण देवसम्मोत्ति / कीलामि य जयसेणं तत्थ | अहं विविहकीलाहिं // 192 // अह अन्नया य बाहिं विणिग्गओ गेण्हिऊण जयसेणं / पुरिसेहिं दोहि दिट्ठो तत्थ अहं जोगिरूवेहि *193 // संभासिऊण पुचि दिनो मह तेहिं पवरतंबोलो / तम्मि समाणियमित्ते मइसंमोहो महं जाओ // 194 // तत्तो कुमरसमेओ तेसिमणुमग्गमेव लग्गो है / जाणामि नेव किंचिवि विमोहिओ तेहिं पावेहिं // 195 // तेहि समेतो अहयं वयामि जा कित्तियपि | भूभागं / ताव य तिसिएण मए एगम्मि उववणनिगुंजे // 196 // बहुविहतरुफलकलुस पीयं नीरं तु तप्पभावेण / जाओ सत्थ| सरीरो विचिंतिय ताहि मे एयं // 197 / / रयणीइ गहिय कुमरं नासिस्समिमाण पावपुरिसाणं / इय चिंतिय चलिओ हं अलक्खिओ| 1 स्वेच्छया परिभ्रमति / 3 वयस्यविसरेण=मित्रसमूहेन / 3 वापीतटोपविष्टः / 4 प्रतिकारम्-उपायम् / 5 यातु / 6 बालपालकः / 7 कीडयामि | * खेलयामि / " बहिः / 9 तृषितेन / 10 पञ्चम्याः स्थानेऽत्र षष्ठी / // 7 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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