________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकहणीयं पावियवेत्तरं तया भद्दे ! / जाणामि नेव किंचिवि तदुत्तरं जं महं जायं // 170 // केवलमुच्छंगगयं कस्सवि तरुणस्स अमयभूयस्स / विसनिव्ववणसमत्थं मणिसलिलं पाययंतस्स // 171 / / खणमेतं तेणं चिय मज्झ सरीरं पसिंचमाणस्स / सयमंगाई | | कोमलकरहिं परिमद्दयंतस्स / / 172 / / जलसित्ततालवेंटयहत्थाए विहियसिसिरवायाए / चिरदिदै पियसहीए पियंवयाए कहिजतं / / // 173 / / सयलं मह वुत्तंतं चित्तपडालोयणाइपजंतं / हरिसभरपुलइयंगं खणंतरं निसुणमाणस्स / / 174|| अप्पाणं पासिता पण?| विसवेयणा समासत्था / सुमिणव मन्नमाणा पंडिबुद्धा हंसिए ! तइया // 175 / / पञ्चभिः कुलकम् // उम्मीलियनयणर्जुया ताव य पेच्छामि मयणपडिरूवं / महहिययनिग्गय पिव तरुणनरं चित्तेसंवाई // 176 // तं द? चिंतियं मे किं मन्ने इंदजालमेयंति ? / किं वावि अन्नजम्मो उयाहु किं सुविणयं एयं // 177 // किंवा मइसंमोहो किंवावि हु सच्चमेव एयंति ? / अहवा नहि नहि एयं कत्तो मह एत्तिया पुन्ना? // 178 // जे सो मणवल्लहओ दीसिज जणो इमेहिं नयणेहि। जं से उच्छंगगया इमस्स पुण संभवो कत्थ ? | // 179 / / एवं विचिंतयंती पियंवयाए इमं समुल्लविया / सुरसुंदरि ! किं अञ्जवि उव्वुण्णमुहिव्व पुलएसि // 180 // एसो हु रय णदीवो भगिणी य पियंचया अहं तुज्झ / साहियविजो एसो मह भाया मयरकेउत्ति // 181 // एवं च तीए भणिए एसोचिय सोत्ति | हरिसिया चित्ते। सज्झसवेविरदेहा संकिन्नरसंतरं पत्ता // 182 / / उद्वेत्तु तेदङ्काओ पियंवयाए समीवमल्लीणा। अद्धच्छिपेच्छिएहिं पेच्छित्तातं अपेच्छंतं / / 183 // एत्थंतरम्मि एगो खयरो आगम्म भणइ कयविणओ। जिणपूयाए वेला संमइच्छइ कुमर ! उद्वेह // 184 // | 1 अवस्थान्तरम् / 2 आलोयणे आलोकनम् / 3 शृण्वतः / 4 जुय युगम् / 5 चित्रसंवादिनम् / 6 पुण्यानि, प्राकृतत्वेन पुंस्त्वम् / 7 अस्यार्थस्येत्यर्थः / Isfell . उन्बुण्ण उद्विमम् / 1 तदकात्-तस्य मकरकेतोरसङ्गात् / 10 समइच्छद गरछते। For Private and Personal Use Only