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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि बारहमो परिच्छेओ // 103 // होज सुही ताव ताओवि // 156 / / मणवल्लहस्स तस्स उ लाभेण हविज अहव सुहिया है। मह पावपरिणईए एत्तो एकपि नो जायं // 157 // एवं विचिंतयंती भणिया हं तेण ताव एत्थेव / चिट्ठउ तुम जाव अहं आसन्ने वंसिगहणम्मि // 158|| गंतूण विजाए ॐा पन्नत्तीए लहुं पयच्छामि / जावसहस्समेत्तं पारंभियपुव्वसेवाए ||159 / / युग्मम् / / इय भणिऊण गओ सो अहमवि गुरुसोयताविया तत्थ / किंकायब्वयमूढा सरणविहूणा भयुप्पित्था // 160 // हरिणिव्व जूहभट्ठा सतरलतारं दिसाओ पुलयंती / अंसुजलपुन्ननयणा रुयमाणी जाव चिट्ठामि / / 16 / / ताव य तत्थासनं पिच्छामि विसालसालसो| हिल्लं / पवणांकंपियफलभरविणमियगुंजोहसंकिन्नं // 162 // मणहारिफलं पसरतपरिमलं बहलपत्तलच्छायं। तप्फलभक्खणनिवडत| जंतुसंताणकयसई // 163 // निवडतससंततडफडतमयविहगकलियभूवीदं / तरुयरमुचं मच्चुंव जंतुसंताणनासयरं // 164 // पञ्चभिः | कुलकम् // तं दटुं विसरुक्खं विचिंतियं गरुयदुक्खतवियाए / पियसहि ! हंसिणि ! तइया मरणम्मि निबद्धचित्ताए // 165 // किं काहामि अहन्ना रहिया पियबंधुजणणिजणएहिं / विहिणा विडंबिया हं जीवंती इय विचिंतेंती // 166 / / गंतुं तस्स समीवे गहिऊण फलं मुहम्मि पक्खित्तं / मा मह हविज एरिसविडंबणा अन्नजम्मेवि // 167 // इय भणिऊण ससोयं खणतरं जाव तत्थ अच्छामि / ' ताव य गुरुविसवियणाए विमला महियले पडिया // 168 // तिसृभिः विशेषकम् // तओ। भमियंव वणतरूहि उव्वत्तिययंव सयलवसुहाए। संधीहि विहडियं पिव विसीइयं सन्वअंगेहिं // 169 // तत्तो य| 1 उप्पिस्था त्रस्ता, विधुरा वा। 2 पत्तलं पत्रम् / 3 संतान: समूहः। 4 निपतत्श्वसत्परिचलत्मृतविहगकलितभूपीठम् , तडफडत परिचलत् / * 5 अधन्या / 6 विहला+व्याकुला / 7 विघटित-वियुक्तम् / // 103 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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