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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढमो * परिच्छेओ। सुरसुंदरी चरि। // 6 // तस्सेव / महया उवयारेण दिजइ कमलावई एसा // 154 // युग्मम् // एवं रण्णा भणिओ तत्तो पणमित्तु तस्स पयकमलं / कइवयपरियणसहिओ कुसग्गनयराउ नीहरिओ॥१५५॥ सुग्गीवकिचिवद्धणपमुहाणं नरवईण मे एसा। संदसिया न पुणो जाया इह अस्थसंसिद्धी॥१५६॥ अज्ज पुणो इह नयरे समागओ देव ! तुम्ह पासम्मि / एयं नियच्छिऊणं मुच्छा जाया य तुम्हाणं // 157 / / जायं मह सामिसमीहियं ति चिंतित्तु तेण नरनाह ! / जाओ हरिसो मज्झ सुमरिय नेमित्तियं वयणं // 158 // एएण कारणेणं मुच्छाए तुम्ह हरिसिओ अहयं / ता मा नरिंद! अन्नहभावेण वियप्पसु ममंति // 159 // इइ चित्तसेणवयणं सोऊणं विगयअन्नासंको। वञ्जरइ अमरकेऊ विम्हेइओ चित्तरूवेण // 160 // किं तीए कमाए एरिसयं अत्थि रूवसोहग्ग। ता भणई चित्तसेणते निमेसमेत इमं लिहियं ॥१६॥को सक्कइ कुसलोवि हु जैहड्डियं तीए रायकनाए / निज्जियतियसविलासिणीरूवं रूवं समालिहिउँ // 162 // तव्वयणं सोऊणं हरिसियहियएण राइणा तस्स / अंगविलग्गमसेसं पसाइयं कडयवस्थाई // 16 // तो भणइ चित्तसेणो | आएसं देह देव ! अम्हाणं / नरवाहणस्स रण्णो जहट्ठियं जेण साहेमो॥१६४॥ रण्णण्णुनाओ सो कमेण पत्तो कुसग्गनयरम्मि / नरवाहणस्स रनो सिट्ठो सबोवि वुत्तंतो॥१६५॥ अह तेणवि नियभगिणी पभूयधणपरियणेण परियरिया / पट्टविया हिडेणं सयंवरा अमरकेउस्स // 166 // सिरिकताइसहिजणं | आभासित्ता य सयलपरिवार / कमलावईवि चलिया हरिसविसायाउरा हियए // 167 // इच्छियवरलाभेणं साणंदा तहय बंधुविरहेणं / किंचि ससोगा पत्ता कमेण सा हत्थिणपुरम्मि // 168 // महया विच्छड्डेणं सोहणलग्गम्मि गुरुपमोएणं / कमलावई उ रन्ना परिणीया निःसृतः। 3 दृष्ट्वा / 3 स्मृत्वा / 4 विस्मितः / 5 यथास्थितम् / 6 कथयामः / ॐ विच्छटो-बिच्छर्दो विस्तारः विच्छलो समूहः विच्छङ्का-ऋद्धिः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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