________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं सदं सोचा भीया, को एस एवमुल्लवइ ? / इय चिंतिय जाव अहं नियउच्छंग पलोएमि // 245 / / ता नत्थि तत्थ पुत्तो विचिं. तिय ताहि हा ! किमयंति / किं कहवि होज पडिओ अहवा केणावि अवहरिओ ? // 246 / / किंवा सुमिणं एवं किंवा मइविब्भमो * महं एसो ? / एमाइ चिंतयंती गवेसिउ ताहि पारद्धा // 24 // तिसृभिः कुलकम् // इओ तो तत्थ गवेसयंती सुयं महाराय ! | अपाउणंती / सिरम्मि वजेणव ताडिया हं धसत्ति मुच्छाइ वसं गयत्ति / / 248 / / साहुधणेसरविरइयसुबोहगाहासमूहरम्माए / | रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमंतभूयाए // 249 / / एसोवि परिसमप्पइ कमलावइपुत्तहरणनामोत्ति / सुरसुंदरिनामाए कहाइ दसमो परिच्छेओ / / 250 // // दशमो परिच्छेओ समत्तो॥ एगारहमो परिच्छेओ। अह लद्धचेयणा हं मुच्छाविरहम्मि गैरुयसोगिल्ला / नियहिययं कुट्टिती पलविउमेवं समाढत्ता // 1 // हा ! निद्दएण केणवि अडवीपडियाए दुक्खतवियाए। तक्खणमेत्तुप्पन्नो पुत्तो हरिओ अहन्नाए // 2 // किल पुत्तयस्स वयणं पिच्छिस्समहं पभायसमय| म्मि / नवरं हयासविहिणा एवं मह अन्नहा विहियं // 3 // अडविपवेसाईयं दुक्खं दाऊण दूसहं देव ! / किं अञ्जवि न हु तुट्ठो अवहरिओ जेण मह पुत्तो? // 4 // वणदेवयाओ! तुम्हं सरणम्मि समागयाए मह पुत्तो। हरिओ, ता किं जुज्जइ एत्थवि वेही करे 1 स्वप्नः / 2 अपश्यन्ती / 3 गुरुशोका; स्वार्थेऽत्र कः, इल्लश्च / 4 वेधाः विधाता। For Private and Personal Use Only