________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी -*-* चरिअं। दसमो परिच्छेओ // 88 // *-* * वियणाहि पीडियसरीरा / सयमेव पेसबिया हं महाकिलेसेण नरनाह ! // 230 // युग्मम् / / मुच्छाविरमे य तओ लुलमाण महिय* लम्मि तं बालं / चित्तूण निजुच्छंगे गरुयसिणेहेण तत्तो य // 231 / / गंतूण जलासने पहावित्ता ताहि निययवत्थाई / पक्खालिय एगते उवविट्ठा तरुलयागहणे // 232 // युग्मम् // तं दिव्यमणिसणाहं उत्तारिय अंगुलीययं हत्था / कंठम्मि मए बद्धं सुयस्स एवं भणतीए // 233 / / एयस्स पभावाओ मा मह तणयस्स केवि अंगम्मि / पहरंतु भूयसावयपिसायदुट्ठग्गहाईया // 234 // वणवासिणीओ ! निसुणह भो भो वणदेवयाओ ! मह वयणं / तणयसमेया संपइ सरणं भवईणमल्लीणा // 235 / / केसरिवग्याइणं मंसाहाराण कूरसत्ताणं / भीसणअडवीपडिया रक्खेयव्या पयत्तेण // 236 // जइ पुत्त ! इमा रयणी होंतो मह तम्मि हस्थिणपुरम्मि / ता एत्ति| यवेलाए राया वद्धाविओ होतो // 337 / / सयलस्स परियणस्स य पुरस्स सामंतमंतिवग्गस्स / कस्स व न होज तोसो पुत्तय ! तुह | जम्मसमयम्मि // 238 / / दुबिहियविहिविहाणा पडियाए भीसणे य रनम्मि / जाओ सि मज्झ पुत्तय ! करेमि किं मंदर्भग्गा है ? | // 239 / / जायम्मि तुमे पुत्तय ! रन्नपि हु संपर्य इमं वसिमं / नटुं भयं असेसं उच्छंगगए तुमे वच्छ ! // 240 / / तुह मुहपलोय| णेणं संपन्नमणोरहा भविस्सामि / रविकरपहयंधयारे जायम्मि दिणम्मि सकयत्था // 241 / / एमाइ भणंतीए पंहसमखिन्नाए नीसह |गाए / वियणाविगमाओ तहिं समागया मे तहिं निदा // 242 // तत्तो खणंतराओ पडिबुद्धा झत्ति मंदर्भग्गा है। केणावि हु उल्लवियं | एयं सई सुणेऊणं // 243 / / निउँणं जोयंतेणवि पभूयकालाओ पाव! दिट्ठो सि / काहामि वइरअंतं अणुहव दुविहियफलमिहि // 244 // H2*16028H8*48 1188 // प्रसूता / 1 लठम्तम् / 3 भवतीनाम् =युष्माकम् / 4 अल्लीणा=आलीना / 5 अभविष्यत् / 6 भगम्भाग्यम् / 7 पधिधमखिनया / / | निपुर्ण यथा स्यात्तथा / For Private and Personal Use Only