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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरि। दसमो // 86 // अविय / मणिसंजुयकरपहओ बजेणिव ताडिओ गइंदो सो। मोत्तुं गुरुचीहाडि अहोमुहो झत्ति गयणाओ॥१८२॥ जा निव-* *डइ वेगेण ताव य हिट्ठामुहं नियंतीऐ / दिढ महंतमेगं सरोवरं भंगुरतरंग // 183 // युग्मम् / / परिहत्थमच्छपुच्छच्छडाहि उच्छलि | परिच्छेओ | यसलिलउप्पीलं / महुमत्तमहुयरीविसररुद्धवियसंततामरसं // 184 // ___अविय / फुरतमणिजालयं तरंतटिट्टिभालयं / रहंगपंतिमंडियं विहंगसत्थबड्डयं // 185 / / भमंतभूरिगोहियं सरोरुहालिसोहियं / / अणेगसावयाउलं झसोहलुद्धसाउलं // 186 // चलंतभीमगोहयं रेडतदद्रोहयं / मरालपतिसोहियं तमालतालरेहिये ॥१८॥रणतछप्पयालिय बलायपंतिमालियं / फुरतसिप्पिसंपुडं भमंतभीमदीबडें // 188 // अह तम्मि नीरपुग्ने अणोरपारम्मि सरवरे हत्थी। गयणाओ नीसहंगो पडिओ बुड्डो य जलमज्झे // 189 // अह नीसहे गईदे बुंडे गंभीरनीरमज्झम्मि / मणिणो माहप्पेणं जलउवरि | | चेव थका है॥१९०॥ आसाइयफलगावि य उत्तरिउं सरवरस्स तीरम्मि / उवविट्ठा भयभीया गुरुसोगा इय विचितंता // 191 // || | तारिसरिद्धिजुयावि हु खणेण एगागिणी कहं जाया। देसियजुबईव अहो ! अइगुविलो कम्मपरिणामो // 192 // सो कत्थ भिच्च| वग्गो सा य सिरी सो विणीयपरिवारो। होहामि कहं इण्हि विहिया एगागिणी विहिणा // 193 / / एमाइ चिंतयंती उवरिमवत्थेण | छाइउं वयणं / सरणविहुणा सोएणं तत्थ अहं रोविउ लग्गा // 194 / / गजेन्द्रः / 2 चीहाकी-दुःखोद्भूता गर्जना 'चीस' इति भाषायाम् / / पश्यन्त्या। 4 उणील-संघात:, स्थपुरव / 5 तामरसं-कमलम्। 6 दिहिभो| जन्तुविशेषः। 7 वयं महत् वड्डिय-व्याप्तम् / 8 गोधा-जीवविशेषः / 9 आलि: समूहः / 10 श्वापदा: दुष्टजन्तवः / 11 झषाणां मत्स्यानामोघे समूहे लुब्धेः // 86 // धीवरैः संकुलं व्याप्तम् / 12 गाहा जलजन्तुविशेषः / 13 रटन्तः शब्दं कुर्वन्तः / 14 रेहियं-राजितं / 15 दीव टो-जन्तुविशेषः / 16 बुड्डो मग्नः। 17 PSI थका=स्थिता। 18 देशिका=देशे प्रोषिता=प्रवासिनीत्यर्थः / * अशक्तानः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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