________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूढा मंचीए कमेण उत्तारिया तओ देवी / दुब्बलदेहा रना कहकहवि हु पंचभिन्नाया॥१६९।। युग्मम् / / सावि य दटुं रायं रोवंती | घग्घरेण सद्देण | चरणविलग्गा रना असुजलप्फुन्ननयणेण // 170 // नीया निययावासे देवि दट्ठण परियणो सम्बो। अइगुरुसोगो | रोवई विविहपलावेहिं दीणमुहो // 171 // युग्मम् // अह कयसरीरचिट्ठा पुट्ठा कमलाबई नरिंदेण / तइया करिणा नीयाए किं तुमे | देवि! अणुभूयं // 172 / / कइया व कहव पडिया भीसणकूवम्मि एत्थ अडवीए / कमलाबईइ भणियं सुणसु महाराय ! साहेमि | // 173 / / वडपायवम्मि लग्गे देवे तं विलग्गिउं असत्ता है / वेगपहावियकरिणा हरिया एगागिणी ताव // 174 // अह सो गिरिसरियाए विसमतडि पाविऊण सहसत्ति / अइवेगभंगभीउव्व नहयलं झत्ति उप्पइओ // 175 / / तत्तो भयभीयाऐ विचिंतिय हंत ! | करिवरपविट्ठो। अवहरइ कोवि देवो न जेण करिणो वयंति नहे // 176 / / इय विम्हियहियया है पुणो पुणो जा महिं पलोएमि। पिच्छामि ताव गिरितरुपमुहं सँमगंव वच्चंतं // 177 // अविय / एगागिणी अरण्णे महिला बीहिज अडवीमज्झम्मि / इय कलिउंव सहाया तरुणो वेगेण धावति // 178 // किडियनयरसमाई चलंतमणुयाई गामनयराई / जलभरियसरवराईवि (पि!) महिनिवडियछत्तसरिसाई // 179|| दीहरवणराईओ सप्पसरि च्छाओ संचविजंति / पालिसरिच्छा गिरिणो सारणिसरिसाओ सरियाओ॥१८०।। अह दूरमइगयाए संभरिओ अंगुलीयगमणी सो। का अवहत्थिय ताहि भयं पहओ सो तेण कुंभयडे // 181 / / . प्रत्यभिज्ञाता उपलक्षिता / 2 रुदती। 3 अफुन्नं पूर्णम् / 4 अशक्ता / 5 सरित-नदी। 6 नमपि / 7 समर्क युगपत् / 8 दृश्यन्ते। 9 संस्मृतः। *10 अपहस्तयित्वा=अवगणय्य / For Private and Personal Use Only