________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुविणयपरमत्थो फुरइ मह हियए // 79 // एयं धणदेवस्स ओ वयणं सोऊण सुविणयन्नहिं / भणियं अहो! अउच्वं एयस्स उ बुद्धि| कोसल्लं // 80 // सययं तल्लिच्छेहिवि बहुसत्थवियक्खणेहिं अम्हेहिं / तबिहबुद्धिविउत्तेहिं सक्कियं नो विणिच्छेउं // 81 // सुसिलिट्ठो | नणु अत्थो निरूविओ राय ! वर्णियउत्तेण / सब्वेसिं अम्हाणवि सुसंमओ चेव एसोत्ति / / 82 / / इय भणिए ते रन्ना तंबोलपयाणपुवयं सव्वे | पट्टविया तह सव्वे सामंतमहंतमाईया / / 8 / / तत्तो रन्ना भणियं इहि धणदेव ! किमिह कायई / देवीइ समं अम्हं उवट्ठिए दुसहविरहम्मि // 84 // किं एत्थ अस्थि कोवि हु पडिघायविही सुदुदृसुविणस्स / भणिय धणदेवेणं न अन्नहा केवलिगिरा | ओ॥८५।। तहवि हु एस उवाओ कीरइ मा होज तेण पडिघाओ। मंचयपडियाण पुणो तहट्ठिया चेव भूमित्ति // 86 // पल्लीवाणा | तइया दिव्यमणी जो समप्पिओ मज्झ / सो एस अंगुलीयगनिवेसिओ चिट्ठउ करम्मि ||87|| एसो अचिंतसत्ती अणेयठाणेसु दिट्ठ माहप्पो / ता एयं देवीए करट्ठियं देव ! कारेह / / 88 // युग्मम् / / पुनविरुद्धोवि सुरो हरणे देवीइ होज असमत्थो / एयस्स पभा|वाओ, अह कहवि करिज अवहरणं / / 89 / / तहवि हु अवगारम्मी सक्किस्सइ नेव वट्टिउं वइरी / नाउं इमं नरेसर ! मा सोगं | किंचिवि करेह // 10 // अन्नं च / सुविणपडिघायणत्थं कारेसु जिणालएसु महिमाओ / पूएमु समणसंघ तदुचियवस्थासणाईहिं // 91|| दावेसु अभयदाणं विविहाभिग्गहतवेसु उञ्जमसु / एवं कयम्मि नरवर ! सर्वपि हु सुंदरं होही // 92 // इय भणिउं धणदेवो समप्पिडं अंगुलीययं 1 स्वप्नज्ञैः / 2 अपूर्वम् / 3 गुश्लिष्टः-मुसंगतः / 4 वणिक् पुत्रेण / 5 उपायः / 6 माहप-माहात्म्यम् / 7 ज्ञात्वा / 8 श्रमणः साधुः / 9 उद्यच्छ उद्यम कुरुष्व / For Private and Personal Use Only