________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *48 सुरसुंदरी चरिअं। दसमो परिच्छेओ AE39 // 82 // A5 D DRE-984636-2845398-%E0 सेसं च सुविणजाणगपुच्छगविहिणा वियाणिउं तुज्झ / साहिस्सं मा काहिसि उब्वेग किंचि हिययम्मि // 65 // तत्तो पभायसमए | गंतु अत्थाणमंडवे राया। आणवइ सुमिणसत्थत्थजाणए झत्ति बाहरह // 66 // तत्थ निउत्तनरेहिं तहेब संपाडियाए आणाए / सामंतमंतिपुरनायगेहिं पुनम्मि अत्थाणे // 67 // कयविणया सुविणन्नू उवविट्ठा अह नरिंदआसन्ने / धणदेवोवि हु रनो आसन्नो | चेव उवविट्ठो॥६८॥ युग्मम् // तत्तो रन्ना तेसि सिट्ठो सुरदसणाइवुत्तंतो। पुवुत्तो सवोवि हु सुविणगउवलंभअवसाणो // 69 / / सम्म 'विणिच्छिऊणं सुविणसरूवं कहेह भो ! तत्तं / इय भणिया ते रन्ना अन्नोन जाव चिंतिति // 70 // ताव य धणदेवेणं भणियं नरनाह ! | देसु अवहाणं / सुविणपरमत्थजाणणहेउं निसुणेसु बुत्तुंतं // 71 // युग्मम् / / तओ / अह अडवीए दिट्ठो भिल्लबई, तेण जह य सप्पेहिं / बद्धो उ चित्तवेगो विमोइओ मणिपभावाओ // 72 // जह तेण | निययचरिए सिट्ठ देवस्स आगमो आसि / देवेण केवली अह दिट्ठो य कुसग्गनयरम्मि / / 73 / / जह भाविभवं पुट्ठो केवलिणा जह य | तस्स आइ8 / सिरिअमरकेउरन्नो होहिसि पुत्तो तुम भद्द! // 74 // जणणीइ समं तत्थ य अवहरिओ पुव्ववेरियसुरेण / ता चित्तवेग! खयराहिवस्स गेहम्मि वड्डिहिसि // 75 / / एमाइ पुब्बउत्तं सवित्थर साहियं नरवइस्स / धणदेवेणं जाव य संपत्तो हत्थिणपुरम्मि // 7 // |ता देव! देविउदरे विहुप्पहो सो सुरो समुप्पन्नो। होही, जओ न केवलिवयणं इह अन्नहा होइ / / 77|| पुव्वविरुद्धसुरेणं हरिओ खयरस्स वडिओ गेहे। साहियबहुविहविजो मिलिही सो निययजणणीए // 78|| इच्छियकन्नादाणं मालाए पूयणपि मन्ना सि / एसो नरिंद! 1 विज्ञाय / 2 आस्थान सभा / 3 संपादितायां परिपालितायाम् / 4 स्वप्नज्ञाः / 5 पूर्वोक्तः / 6 विनिधित्य-निर्णीय / 7 भिल्लपतिना / 8 विमोचितः / 9 कथितम् / // 82 // For Private and Personal Use Only