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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie सुरसुंदरी -*-*-16 नवमो परिच्छेओ चरिअं। एत्यंतरम्मि केणवि करंकमज्झट्ठिएण बजरियं / धणदेव ! एहि एत्तो अहयं सो देवसम्मोत्ति // 208 // पलिच्छिन्नचलणजुयलो गुरुपहरणघायजञ्जरियदेहो / गाढं तिसाभिभूओ अञ्जवि चिट्ठामि जीवंतो // 209 / / तं सोउं धणदेवो पुरिसं पट्टविय पाणियनिमित्तं / अइगुरुविसायजुत्तो पत्तो अह तस्स पासम्मि // 210 / / भणियं धणदेवेणं साहसु भो ! केण विलसिय एयं / सो कत्थ सुप्पइट्ठो अह सो सँणियं समुल्लवइ / / 211 // // 78 // एतो तइयम्मि दिणे सिद्धपुराओ समागओ पुरिसो। एगंतरिम य सिट्ठ तेण इमं पल्लिनाहस्स // 212 // कुमर ! अहं पट्ठविओ तुहपिउवरमंतिसुमइनामेण / भणियं च तेण, एयं साहेजसु सुप्पइट्ठस्स / / 21 / / सुग्गीवस्सिह रन्नो अतिसुरयपसंगदोसओ जाओ। | खयवाही तेण इमो चेट्ठइ खणजीवियवोति // 214 // एसोवि सुरहकुमरो संतावइ सयलपयइवग्गं तु / दुस्सीलो उल्लुंठो असम्भ| भासी अकजरओ // 215 / / तह एयस्स विरत्ता सामंतमहंतमाइया सव्वे / रजसिरीए अजोगो, ते चेव य कुमर! जोगो सि॥ // 216 // तुज्झ पुण वहट्ठाए कणगवईए पभूयविक्खेवो / पट्ठविओ ता तुमए रक्खेयव्वं नियसरीरं // 217 // एवं च जाव साहइ सो पुरिसो भद्द ! पल्लिनाहस्स / ताव य सो विक्खेवो पभूयरहतुरयपाइको // 218 // सहसच्चिय संपत्तो समंतओ | वेढिया इमा पल्ली / अह भिल्लनिवहसहिओ नीहरिओ सुप्पइट्ठोवि // 219 / / युग्मम् / बहुजणसंहारकरं लग्गं आओहणं महाघोरं / 1 पलिच्छिन्न प्रतिच्छिन्नम् / 2 तृषाऽभिभूतः। 3 पाणिय पानीयं जलम् / 4 शनैः / 5 क्षयव्याधिः। 6 चेहद-तिष्ठति / * त्वमेव / 8 पाइको| पदातिः / 9 आयोधन-संग्रामः / *83-*-* -81-88 BRER ||78 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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