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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चरिअं। नवमो | परिच्छेओ // 77 // जाहे न चइति तत्थ गारुडिया / सव्वायरलग्गावि हु विसवियणं से नियत्तेउ // 179 / / तत्तो तीए विसन्नो सहोवि हु परियणो पिया भाया। चिंतेति य किं होही अलियं नेमित्तियाइ8 1 // 180 // पुणरवि य तम्मि नयरे डिडिमसद्देण सव्वगारुडिया। वाहरिया न य केणवि उट्ठविया सप्पदट्ठा सा // 181 / / एत्थंतरम्मि केणवि पओयणेणं समागओ तत्थ। धणदेवो अह पेच्छइ समाउलं परियणं | सव्वं // 182 / / अह दर्ल्ड सिरिदत्तं पुच्छइ किं मित्त! आउला तुम्मे ? / दीसह विदाणमुहा, अह सिरिदत्तो इमं भणइ // 183 // सिरिकता मह भगिणी कन्ना सप्पेण अञ्ज दट्ठत्ति / न उ जीवावइ कोवि हु तेणम्हे आउला मित्त ! // 184 / / अन्नं च / नेमित्तिएण पुव्वं आइ8 आसि सप्पडसिय जो। उजीविस्सइ एयं होही एयाए सो भत्ता // 185 / / एयं च तस्स वयणं अलियप्पायं तु संपई जायं / जं सा अहिणा डेक्का न य कोवि हु तं समुट्ठवइ // 186 / / धणदेव! तओ अम्हं संपइ तुट्टा ओ || जीवियव्वासा। अइवल्लहभगिणीए तेणम्ह सोगाउला धेणियं / / 187|| इय सोउं धणदेवो सहरिसचित्तो समुल्लवइ एवं / मा कुण | | सोयं सुंदर! न होइ अलियं तयं वयणं ।।१८८॥"दे! पिच्छामो ताव य तुह भगिणिं, तेण एवमुल्लविए / नीओ तीए समीवे धणदेवो भणइ नियपुरिसं // 189 / / तं सुप्पइट्टदिन्नं आणेसु मणिति ताहे सो पुरिसो। पित्तुं लहु दिव्वमणि समागओ तस्स पास| म्मि // 190 / / विमलसलिलेण सित्तो दिव्वमणी ताहे तेण नीरेण / अंभोक्खिया सलीलं समुट्ठिआ सुहपसुत्तब्य // 191 // ____ अविय / तीए तं देहगयं सप्पविसं मणिजलेण संसित्तं / सुक्कज्झाणाभिहयं नहूँ कम्मंव मोहणियं // 192 // तं दळु सिरिदत्तो 1 शक्नुवन्ति / २-वेय तीइ अवणेउं / 3 उत्थापिता=सुस्थतामापादिता / 4 विद्राणमुखाः म्लानाननाः / 5 अलीकम् असत्यम् / 6 दष्टा। 7 श्रुटिता। 8 जीवितव्यस्य जीवनस्य आशा / 9 अतिशयेन। 10 'दे' इति संमुखीकरणादावर्थेऽव्ययम् / 11 तेण तयणु सलिलेण। 12 स्नपिता=सिक्का / 77 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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