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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देति य जइ मे विमग्गिया एए / ता होज मह कयत्थो दइयाए इमाए मणुयभवो // 164 // कह होज मज्झ एसा मग्गामि सयंपि अहव अन्नेण / जइ दाहिति न मझं विमग्गिया, होज लहुयत्तं // 165|| अहवा समाणजाई धणवंतो वसणवजिओ तह य / एसावि जोव्वणत्था तम्हा दाहिति मह एए // 166 / / एवं विचिंतयंतो काऊणं भोयणं तु धणदेवो / सिरिदत्तेण विइन्ने' तंबोलविलेवणा| इम्मि // 167 // गेहाओ नीहरिओ गंतूणं निययवासठाणम्मि / सिरिताहयहियओ पासुत्तो पवरसयणीए // 168 // युग्मम् / / एत्तो य मयणवसगा सिरिकता रणरणेण अभिभूया। गंतूण गिहुजाणे पासुत्ता कयलिगेहम्मि // 169 // तत्थयवक्खित्तमणा कसिणभुयंगेण | बाहुमूलम्मि / दैट्ठा दट्ठण अहिं अईवभयवेविरसरीरा // 170 / / आगम्म माउमूले रुयमाणी भणइ वेयणपरट्ठा / अम्मो! «द्धा खद्धा अहयं गुरुकसिणसप्पेण // 171 / / युग्मम् / / पेलवसत्तत्तणओ उकंडयाए य विसवियारस्स / वेयणाए पभूयत्ता सेभयत्ता इत्थिभावस्स / / // 172 / / मीलियलोयणजुयलं नीसाहारा धसत्ति धरणीए / विहलंघला निवडिया जणणीए पेच्छमाणीए॥१७३।। तं दटुंसिरि| मइणा सागरसेट्ठी तहेव सिरिदत्तो। तह सयलपरियणो सो सहसत्ति समाउलीभूओ॥१७४।। ताहे बहुगारुडिया हक्कारिजंति मंत| तंतविऊ। कीरंति मंतजावा तह वट्टिजंती मूलीओ॥१७२।। धारेंति धारणाओ केवि हु कन्नम्मि दिति से जावं / कलुणं विलवइ जणणी संधीरइ से पिया एवं // 176 / / सुंदरि ! मा कुण सोयं एयं नेमित्तिय तयं वयणं / संपइ पयडीहोही दइए ! जामाउओ | तुज्झ // 177 // अविसंवाई जं सो सुमई नेमित्तिओ तहा सुयणु। कमलावईए सवं निव्वडियं तेण आइ8 // 178 // एवं च वट्टमाणे वितीर्णे दत्ते। 2 उत्कण्ठया। 3 दष्टा / 4 वेविर वेपनशीलम् / 5 आश्चर्यार्थेऽव्ययम् / 6 साविता / 7 उत्कटतया। प्रभूतत्वात् / 9 समयत्वात् / 10 तस्याः पिता / * निवृत्तम्-सिद्धम् / म व्याकुल शरीरा / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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