________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याए मुणिअणुकंपाए तयं विसं हरियं / मोत्तूण तओ दोनिवि सज्झायं काउमारद्धा // 44 // चिंतेइ तओ कविलो हंते विसेणं न किं | मयां एए / नूर्ण मंतबलेण अवहरिया होज विससत्ती // 45|| ता रयणीए अवस्सं मारेयव्वो मए इमो मुडो। जीवंतम्मि इमम्मि नत्थि मम जेण संतोसो॥४६॥ पत्ताए रयणीए सज्झायं कटु साहुणो सुत्ता। कविलोवि अद्धरत्ते समागओ साहुवहणट्ठा // 47 // * आयड्डिऊण खग्गं जाव पहारं करेइ साहुस्स / रुवाए देवयाए पहओ सो तेण खग्गेण // 48 // रोद्दज्झाणोवगओ मरिऊणगओ बिइजेपुढवीए। मुणिणोवि निरइयारं सामन्नं काउं बहुकालं // 49 // कालं काउं विहिणा दोनिवि सोहम्मनामकप्पम्मि / उप्पन्ना सुहप्पुना अच्छरगणसंकुलविमाणे // 50 // युग्मम् / / तत्तो य पउमजीवो सागरमेगं तु आउयं तत्थ / अणुहविऊणिह दीवे एरवए विजयनयरीए // 51 // धणभूइनामगस्स ओ जाओ तणओ सुधम्मनामोत्ति / काऊण य सामन्नं उप्पन्नो बीयकप्पम्मि / // 52 / / युग्मम् / / चंदज्जुणे विमाणे ससिप्पहो नाम सो सुरो जाओ। दो चेव सागराई संपुन आउयं तस्स // 53 / / भद! विहुप्पह ! संपइ विमाणसामी उ सो सुरो तुम्ह। जस्साएसेण तुमं समागओ मह समीवम्मि / / 54 // सो समरकेउजीवो सागरमेगं तु अट्ठपलिएहिं / अब्भहियं अणुभविउ देवभवे अह चुओ तत्वो॥५५।। एत्थेव भरहखेत्ते कुसग्गनयरम्मि भद्दकित्तिस्स / रनो पियमहिलाए सुबंधुदत्ताए कुच्छीए // 56 / / उप्पन्नो सो देवो जाओ य कमेण दारओ तत्तो। घणवाहणोत्ति नाम विहियं से उचियसमयम्मि // 57 / / वड्डेतो य कमेणं पत्तो अह जोवणं जणाणंदं / अहिसिंचिय तं रजे जाओ समणो पिया तस्स // 58 // युग्मम् // विमोऽत्राध्ययमिदम् / 2 मृतौ / 3 कृत्वा / 4 आकृष्य / 5 द्वितीयपृथिव्यां द्वितीयनरके। शुभपुण्यात् , सुखपूज्जी वा / 7 अष्टभिः पल्यैःपल्योपमैरभ्यधिकमेकं सागरं सागरोपमै, 'आयुः' इति शेषः, अनुभूयेत्यर्थः / 8 च्युतः / For Private and Personal Use Only