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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी 89* * नवमो चरि। परिच्छेओ // 73 // | सोवि बहुपुव्वलक्खे रजं परिवालिऊण संबुद्धो। नरवाहणं तु पुत्तं रज्जे ठविऊण पव्वइओ॥५९॥ भद्द ! विहुप्पह ! सो हं विहरतो | अञ्ज इह पुरे पत्तो / अह एगराइयाए ठिओ य पडिमाए अह एत्थ // 60 // सोवि हु कविलो नरए अणुहविउ दारुणं महं दुक्खं / / | सागरमेगं अहियं आउं भोत्तूण उब्बडो // 61 // जाओ मगहाविसए आभीरो साभडोति नामेण / काऊण य बालतवं भवणवई सो सुरो जाओ॥६२॥ परमाहम्मियदेवो | उवरुद्दो नाम सो तहिं जाओ। दट्टण मम इहई समागओ आसुरुत्तोत्ति // 63 / / सुमरंतो तं वरं समागओ तेण मह वहट्ठाए। एवं वइरनिमित्तं समासओ तुह मए सिट्ठ // 64 // भो चित्तवेग ! तत्तो पुणरवि सो केवली मए पुट्ठो। भयवं ! केत्तियमाउं कत्थ व मह | होज उप्पत्ती // 65 // को व पिया मह होही बोहिस्सइ को जिणिंदधम्मम्मि ? / एवं च मए भणिओ भयब ! सो भणिउमाढत्तो | | // 66 // चिट्ठइ आउगसेसं एगवीसं वासकोडिकोडीओ। तत्तो चइऊण तुम आउक्खए हथिणपुरम्मि // 67 // सिरिअमरकेउरनो | देवीकमलावईए कुच्छिम्मि / बहुउवयाइयलद्धो उववजिसि पुत्तभावेण // 68 // युग्मम् // जणणीइ समं तत्थ य अवहरिओ पुब्बवे| रियसुरेण / भो चित्तवेग! खयराहिवस्स गेहम्मि वड्डिहिसि // 69 / / एतेण मह समीवे दिव्वमणी जस्स ढोइओ तुमए। सो चिय परमत्थपिया भविस्सइ तम्मि जम्मम्मि // 70 // पासम्मि सुप्पइट्ठस्स सरिणो पाविऊण गिहिधर्म / अह लद्धं समणतं काहिसि | | संसारवोच्छयं // 71 // इय केवलिणा भणिए तहत्ति बहु मन्निऊण तव्वयणं / ति पैयक्खिणिऊण पुणोऽभिवंदिओ सो मए भयवं | // 72 // तत्तो उप्पइऊणं समागओ एत्थ तुह समीवम्मि / जं तं तुमए पुढे तं सवं साहियं एयं // 73 // भो चित्तवेग! संपइ का 1 उवृत्तः-नरकन्निष्क्रान्तः। 2 आढत्तो आरब्धः / 3 दौकित: उपदीकृतः / 4 व्यवच्छेदम् / 5 त्रिः प्रदक्षिणीकृत्य / 6 उत्पत्य / BR-* For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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