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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहमो सुरसुंदरीचरि। परिच्छेओ। // 62 // किंच / संकुइय केसरी जं उप्पइउमणो गयस्स वहणट्ठा / सोंडीरत्तं किं तत्तिएण उवहासयं लहइ ? // 242 // लद्धावसरो पच्छा | साहियविजओ करिज ज रुइयं / झोडपलियंचणेणवि तुरियगई सिंग्घओ चेव // 24 // किंबहुणा / एसो चिय दिव्बमणी मंदपभावाओ तस्स विजाओ। काही, किं तुह कर्ज ससरीरायासकरणेण 1 // 244 // एवं सुरेण भणिए काऊणं अंजलिं पयत्तेण / विहियपणामेण मए भणियं जं आणवेसित्ति // 245 // बहुमाणपुब्वयं अह दिव्बमणी सुर| वरेण मह सीसे। बद्धो नियहत्थेणं सरीररक्खा य विहियत्ति // 246 // बद्धे मणिम्मि सहसा गरुयपमोओ मणम्मि संजाओ। भो * सुप्पइड ! नटुं भयं असेसं सरीराओ // 247 // संभोसेउं हयगुरुभयं नेहसारं ममं सो। कंताजुत्तं विविहवयणालावसंभासणाए। तत्तो |दित्तीभरियगयणो निजियाणंगरूवो / देवो पचो तुरियगमणो झत्ति असणति // 248 // साधणेसरविरइयसुचोहगाहासमूहरम्माए। | रागग्गिदोसविसहरपसमणजलमंतभूयाए // 249 // एसोवि परिसमपद दिव्वमणिसमप्पणोत्ति नामेण | सुरसुंदरीकहाए सत्तमओ | वरपरिच्छेओ // 250 // 1750 // // सत्तमो परिच्छेओ समत्तो॥ __ अटुमो परिच्छेओ। अहयपि तओ दक्खिणदिसामुहो सह पियाए संचलिओ।चिंतेमि य किं काही खयरो नहवाहणो इहि // 1 // कयसुररक्खस्स महं बहुविजादप्पिओवि सो खयरो। नहु सकिस्सइ काउं अवयारं गरुयरोसोवि // 2 // अहवा किं मह इमिणा विचिंतिएणेह | 1 तावता / 2 चितम्-अभीधम् / 3 मा लतागद्दनम् तत्र प्रत्यम्चनेनापि परिश्रमणेनापि / 4 शीघ्रगामी / 5 संभाष्य / ( भपकारम् / // 62 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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