________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दिव्यमणिमेयं / पुव्वभवे संबंधो तुमए सह आसि को मज्ज // 227 // ततो सुरेण भणियं पत्थावो वित्थरस्स नहु एसो। | सयलाऽऽवयाविणासं गेण्हसु एवं मणिं ताव // 228 // भणियं च मए किंचिह मज्झ कत्तोवि आवया होही / तविगमत्थं सुरवर ! जेण समप्पेसि मणिमेयं 1 // 229 // भणियं सुरेण सुंदर! तुह चरियं सव्वमेव विजाए / पन्नत्तीए सिट्ठ नहवाहणरायतणयस्स // 230 // दइयावहारकुविआ अमरिसवसफुरफुरंतअहरुल्लो / बहुनहयरपरियरिओ तुज्झ वहट्ठाए संचलिओ // 231 // तुज्झ अणुमग्ग| लग्गो आसनो चेव बट्टइ इयाणि / तत्ता जीवंतयरी होही सुह आवया गरुई // 232 / / एयस्स पभावाओ नित्थरिहिसि आवइ सुभी| मंपि / ता गिण्ह इमं सुंदर! दिव्वमणि पाणरक्खट्ठा // 233 / / बंधसु नि त्तिमंगे गुत्तं कुंतलकलावमज्झम्मि। नहवाहणविजाणं |पडिघायसमत्थमेच्चत्थं / / 234 // जइ पुण कहवि हु उचसमइ नेय तविहियवेयणानिवहो / ता मणिजलेण देहं सिंचेयवं पयत्तेण | // 235 // एवं विहिए होहिसि पणढवियणो पुणण्णवसरीरो / ता एस मणी सययं संनिहिओ भद्द! कायव्यो // 236 // सयमेव अहंपि | तमं सुंदर ! रक्खेमि ताओ खयराओ / नवरं समुच्छुगो हं अइगरुयपओयणवसेण // 237 / / ता तं पओयणमहं झाडित्ति संपाडिऊण एहामि / काहामि सयलसुत्थं मा काहिसि अन्नहाभावं // 238 // अनंच तेण समयं विजाबलदप्पिएण खयरेण / मा काहिसि संगाम | गरुओ विजाहि तह जं सो॥२३९।। अइदुकरं हि जइवि हु एयं पुरुसाहिमाणजुत्ताणं / कारणवसेण तहवि हु जुद्धारंभो न कायब्वो | // 240 // तेण समं जुझे अवस्स तुह होइ पाणचाउत्ति / ता मह वयणाउ तुमे वारहडी नेव कायव्वा // 24 // प्रस्ताव: प्रसङ्गः अवसर इति यावत् / 2 जीवान्तकरी जीवितव्यविनाशकारिणी / 3 निस्तरीष्यसि उल्लविष्यसे। 4 निजोत्तमाशं-निजमस्तकम् / 5 अश्वत्थं मत्यर्थम् / 6 एण्यामि / * मुस्थ-प्रमीचीनम् / 8 त्वत् / 9 युद्धम् / For Private and Personal Use Only