________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir IN फग्गुंभूएण / होही किंचि ममं चिय जं दिलु पुच्वकम्मेहिं // 3 // दिव्वमणिणो पभावा संनिसणं च तहय देवस्स / पुनाणुभाव सरिसं होही भवियव्वयादिटुं॥४॥ एमाइबहुविगप्पे चिंतेमाणो वयामि जा तत्थ / ताव य मह दइयाए भणिय भयवेविरतणूए / / 5 / / * हा नाह ! कोवि एसो दीसइ एंतोऽणुमग्गमम्हाणं / विजाहरपरियरिओ मन्ने नहवाहणो होही // 6 / ता पिय ! किंपि उवायं चिंतसु |पीडा न होई जह तुम्ह / अहयपि विरहगुरुदुक्खभाइणी जह न होमित्ति // 7 // वलियग्गीवं ततो पुलोइऊणं मएवि संलत्तं / एमेव कीस सुंदरि ! गरुयविसायं समुव्वहसि // 8 // जइ ता अतकिओवि हु एज इमो खयरविंदपरियरिओ / ता होज भयं गरुयं, विनाए | किं भयं सुयणु!१॥९॥ देवेण चेव कहियं आगमणमिमस्स तुज्झ पञ्चक्खं / ता किं एयं दटुं भयाउरा सुयणु! संजाया // 10 // | देवस्स दिव्यमणिणो पभावओ सुयणु! सुंदरं होही / मा मा कुणसु विसायं एतं दवण एयंति // 1 / / अन्नो न कोवि इण्हि काउं सक्किाए उचाउत्ति / एसो जं सिग्धगई आसन्नो वट्टइ इयाणि // 12 / / दूरेवि न सकिजइ उक्कडविजस्स नासिउमिमस्स / किं पुण लोयणविसए पत्तेहिं सुयणु! अम्हेहिं // 13 / ता होउ पिए ! किंचिवि जं दिट्ठ मज्झ पुव्वकम्मेहिं / नवि किंचि सोईएणं इह | लब्भइ जीवलोगम्मि // 14 // एवं च मए भणिए मुंचती थूलअंसुयपवाहं / गरुयभयसोयतविया सा वाला इय पुणो भणइ // 15 // हा! नाह! पाणवल्लह ! हयविहिणा पावकारिणी अहयं / वसँस्सव फलसमओ तुह विणासाय विहियत्ति // 16 // जइ तइया मणव|लह ! पाणच्चाओ मए कओ होतो। ता किं एरिसगरुआवईए तं नाह ! निवडेतो // 17 // जइ गम्भाओ पडंता बालत्ते वावि जइ 1 फल्गुभूतेन व्यर्थरूपेण / 2 सांनिध्येन साहाय्येन / 3 अतर्कितः अलक्षितः / 4 एयात्-आगच्छेत् / 5 नासिउँ हमस्स-नंष्टुमस्मात् / / शोषितेन= विचिन्तनेन / 7 दशवक्षस्य हि विनाशसमयसामीप्ये एव फलोद्गमो भवति / 8 अभविष्यत् / 1 न्यपतिष्यः / / For Private and Personal Use Only