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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी मतमो चरि। परिच्छेओ। // 56 // एवं च ठिए / जा सा वसुमई अजा देवी चंदप्पहा य सुरलोए / सा हं पियंगुमंजरिनामा इह सुयणु ! संजाया // 68 // दद्दूण * देवनिवहं जाईसरणम्मि अञ्ज उप्पन्ने / संभरिओ सो देवो पाणप्पिओ आसि जो सग्गे // 69 // चिरपरिचियस्स पियसहि ! गाढं उकंठिया अहं इहि / तस्संगमइच्छाए समुच्छुगं इण्हि मह चिंत्त // 70 // तं कइय दिणं होही जम्मि ससिणेहनिदिट्ठीए / पुच्चभवनेहबद्धं पेच्छिस्सं वल्लहं तमहं 1 // 71 // कह सो मे दडब्बो सिग्पं कह तेण संगमो होही / एवंविहचिंताए जाया सोगाउस अहयं // 72 // तं चिय चितंतीएऽवक्खित्तमणाइ आगयावि तुमं / पियसहि ! नो सच्चविया तेण न संभासिया भद्दे ! // 73 // तं जं तुमए पुढे जायं किं सोगकारणं तुज्झ / पियसहि ! धारिणि ! तं तुह नीसेसं साहिंय एवं // 74 // अह धारिणीए भणिय केवलि* वयणं न अन्नहा भदे ।।ता कीस कुणसि सोयं एवं एएण होयचं ? // 75|| हसिऊण मए भणियं एवं एयंति नस्थि संदेहो / मवरं अइउकंठा तुवरह मह माणसं सुयणु। // 76 // एत्थंतरम्मि पिययम! चंपगमाला समागया जणणी। भणह लहु पुत्ति! मजसु आंजसु कुण पवरसिंगारं // 77 // भणियं च मए कि अम्मि ! कारणं जं अइप्पगे चेव / जाया भोयणवेला, अम्माए तओ इमं भणिय / / 74 उजाणे जिणभवणे होही ण्हवणं जुगादिदेवस्स / महया विच्छडेणं अत्थमण जाव सरस्स // 79 / / तत्थ य पुरवत्थब्वो वचइ हकणस्स पेक्खओ लोगो / अम्हेवि गमिस्सामो परियणसहियाई तत्थेव // 8 // तेणेव कारणेणं पभायसमयम्मि भोयण सिद्धता होसे लहुं पउणा जिणभवणे जेण वच्चामो // 81 // एवं नियजणणीए वयणं सोऊण उट्ठिया झत्ति / कयभोयणाइचेट्ठा आरूढासंदणे पवरे // 82 // नियपरियणपरियरिया गया य उजाणभूसणे तत्थ / जिणमंदिरम्मि सम्म पूइचा बंदिओ भयवं // 83 // दिढ जिर्णिद , कइयकदा / 2 वरते / / अतिप्रगे=अतिप्रभाते / 4 प्रेक्षकः / 5 भव / ( प्रगुणाम् मज्जा / 7 स्यन्दन: रथः / // 56 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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