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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | विणिग्गहं पच्छा / / 216 // एवं विचिंतिऊणं अवहरियाओ इमस्स पावस्स / सव्याओ विजआओ जाओ य इमो सभोवत्यो / / 217 // तत्तो य वसुमईए सहसा निदा मए खयं नीया / एईए विबुद्धाए नायं जह एस परपुरिसो // 218 // गंतूण सासुयाए सिट्ठा वत्ता इमीइ सव्वावि / तत्तो सुदंसणाए दवण इमं कओ रोलो // 219 // पडिबुद्धेण इमेणवि तेणिह अंबा सुदंसणा भणिया। सोउं निठु| रघयणं पलोइयं निययदेहं तु // 220 // दहण पुव्वरूवं नियदेहं विम्हिओ इमो चित्ते। मह विजाए पभावो अवहरिओ केण अजत्ति? 221 // एवं विचिंतिऊणं उप्पइउमणेण ताहि एएण / नियविजा संभरिया पवरा नहगामिणी नाम ||222 / / तहवि हु उप्पइऊणं | जाहे न चएइ ताहि विभाय / कुविएण मज्झ केणवि विआच्छेओ कओऽवस्सं // 223 / / तेणेव सभावत्थो जाओ न चएमि गयणमुप्पइउं / एवं विगप्पयंतो एसो दीणतणं पत्तो // 224 // एवं पियसहि ! धारिणि ! सोउं तियसस्स भासियं तस्स / सेट्ठी समुद्ददत्तो सुदंसणा सावि से भा॥२२५|| आलिंगिय तं देवं अइगुरुसुयदुक्खदलियहिययाई / दीहरसरेण दोण्णिवि करुणं रोत्तु पवत्ताई। 226 / / तह तेहिं तत्थ रुमं करुणपलावेहिं नेहभरिएहिं / जह सो समागयजणो सम्बोवि हु रोविउं लग्गो // 227 / / सोऊण रुनसई सेट्ठिस्स गिहम्मि नेयरवत्यो / सव्वोवि हु संमिलिओ सबालवुड्डो जणो तत्थ // 228 // नाऊण य वुत्त॑तं सव्वं अन्नुभबज* रिजंतं / अक्कोसंति बहुविहं सुमंगलं नयरनारीओ // 229 // एयस्स पडउ विज्जू सुत्तो मा एस बुज्झउ पावो। निद्दोसोवि धणवई अवहरिओ जेण पावेण ॥२३०॥हा! पाव ! किन आसी खयरीओ तुह सरूवजुत्ताओ। मुद्धाए वसुमईए जेण तुमे खंडियं सील? // 23 // स्वभावर मूलरूपः / 3 रोलो कोलाहलः / 3 उत्पतितुमनसाउयितुकामेन / 4 रोदितुम् / 5 नगरवास्तव्यः / 6 अन्नुन्नं अन्योन्यम् / 7 बुध्यताम् Joil उत्थीयताम् ; सुप्त एव नियतामित्यर्थः / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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