________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं विचिंतिऊणं उत्तरिया हम्मियाओ सा वाला / पत्ताय सासुयाए सुदंसणाए समीवम्मि // 159 // सा सणियं उट्टविया भणइ | * किमागमणकारणं सुण्हे ! / ततो य वसुमईए जहडियं साहियं सव्वं // 160 // भणिय सुदंसणाए न संभवो अस्थि इत्थ अन्नस्स / / | निद्दावसओ होजा तुह जाओ विन्भमो एसो॥१६१॥ भणियं च वसुमईए अंबि ! सयं चेव ता निरुवेसु / एवं तीए भणिया सुदं-1 सणा लहुं गया तत्थ // 162 // सम्मं निरूविओ सो निदाए पसुत्तओ तहिं पुरिसो। नायं सुदंसणाए जह एस न होइ मह पुत्तो। // 163 / / तत्तो सुदंसणाए पोकरियं दीहरेण सद्देण / धावह धावह लोया! एस अउव्वो नरो कोवि // 164|| अम्ह घरम्मि पविडो |जारो चोरोव्व नृण होऊण / एवं सुदंसणाए विहियं सोऊण हलबोल // 165 // रे! लेहैं लेह घावह कत्थ गओ कत्थ अच्छइ निलुको। एमाइ वाहरंतो समुडिओ परियणो सब्वो // 166 // मिलिओ य भूरिलोगो किं किं एयंति एव जंपतो। सिट्ठी समुद्ददत्तो भणइ पिए! केण मुसिया सि॥१६७॥ सोधि हु सयणीयाओ समुडिओ कलयलं निसामित्तं / वजरह केण अंबे! मुसिया, जं एवमुल्लवसि // // 168 // न हु इत्थ कोवि दीसइ दुङमई कीस अधि! उव्विग्गा। एवं तु तेण भणिया सुदंसणा एवमुल्लवइ // 169 / / को सि तुम | कस्स सुओ कीस गिहं मजा आगओ पाव! १।हा! धिहूँ। किंनिमित्त अंबित्ति ममं समुल्लवसि // 170 // कीस मह पुत्तसेआए इत्थ सुत्तोसि नट्ठमजाय ! / कत्थ कओ मे पुत्तो धणवइनामो हयास ! तुमे // 171 // एवं च तीइ निठुरवयणाणि निसम्म विम्हि-* | ओ चित्त / सो पुरिसो नियदेहं पुणो पुणो अह पुलोएइ // 172 // आलोइऊण सुइरं नियदेहं जाव सामलमुहो सो। उप्पइयमणो ताहे 1 उत्थापिता / 2 स्नुषा-पुत्रवधूः / 3 निरूपय अवलोकय / 4 पूत्कृतम् / 5 B एस-नूनम् / 6 कलकलम् / 7 लात-गृहीतेत्यर्थः / 8 धृष्ट ! 9 पश्यति। For Private and Personal Use Only