________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छट्ठो परिच्छेयो। सुरसुंदरी-1 अच्छेरयम्भूया // 142 / / कमसो बढतीओ तरुणजणुम्मायकारयं रम्मं / अह बाओ पत्ताओ तिथिवि नवजोव्वणारंमं // 143 // कन्ना चरि। | सुलोयणा सा परिणीया मेहलावइपुरीए / सागरदत्तसुएणं सुबंधुनामेण वणिएण // 144 // विजयवईनयरीए सुएण धणभूइसत्थवाहस्स। घणवाहणनामेणं विवाहियाऽगंगवइकमा॥१४५॥ सावि हु वसुमइकन्ना नयरीए मेहलावईए ओ। धणवइणा परिणीया तणएण समु इदत्तस्स // 146 // अह सो घणवइवणिओ कलासु कुसलो अणंगपडिस्वो। समयं तु वसुमईए झुंजइ माणुस्सए भोए // 147 // // 50 // वटुंतसिणेहाणं ताणं अयोगरत्तचित्ताणं / नवजोव्वणाण सरसं विसयसुहं सेवमाणाणं // 148 // गुरुजणविणयरयाणं अवरोप्परविरह-| दुक्खरहियाणं / वञ्चति वासराई आणदियबंधुवग्गाणं // 149 // युग्मम् / / अह अनया कयाइवि पवरे हैम्मियतलम्मि पासुनो। धण| वइवणिो तीए वसुमइदइयाए संजुत्तो॥१५०॥ निम्मलससिकरउजोइयाए रयणीए पच्छिमे जामे / निद्दाखए विबुद्धा मुद्धा सा | वसुमई वरई // 15 // नियसैयणीयपसुत्तं परपुरिसं पिक्खिऊण भयभीया / सा पवणहया तणुतरुलयब अह कंपिया सहसा॥१५२।। चिंतइ सा मियनयणा कत्थ गओ मज्ज्ञ निययनाहो सो। दुक्खपवेसम्मि गिहे एसो पुरिसो कह पविट्ठो ? // 153 // किंवा सो | मणदइओ हविज निहओ इमेण पावेण / सोचिय दइओ अन्नो पडिहासइ किं विवजासा॥१५४॥ अहवा न होह एसो मह दइओ ताव निच्छओ एस / एस अउबो कोवि हु दीसइ दिव्वाणुकारित्ति // 155 // तह सुबह सुंबीसत्थो पविसित्ता परगिहम्मि | एसो / तं नृणं मवियई केणाविहु कारणेणित्थ // 156 // जइ एस अमपुरिसो दइओ वा तहवि इण्हि मह जुत् / नियसासुयाए सिग्धं जहके द्वियं चेव साहेठं // 157 / / जइ पुण एयं न कहेमि कहवि नियसासुयाए वुसतं / आजम्मंपि कलंक सुसहं होइ ता मज्ज्ञ // 158 // 1 सरिसं। 2 हर्म्यम् गृहम् / 3 शयनीयम् शव्या। 4 दुःखेन प्रवेशः शक्यो यत्र तद् दुःखप्रवेशम् / 5 विपर्यासात् भ्रमात् / 6 अपूर्वः / 7 सुवि*श्वस्तः। " सामुयावधः / 9 साहे-कथयितुम् / **6* *8888888**698 // 50 // For Private and Personal Use Only