________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie छट्टो परिच्छेओ। // 51 // सुरसुंदरी-* आलोयइ नहयलं सहसा // 173 // बुड बुड इय अव्वत्तं जावं दितोव्व पवरविजाए। उल्ललइ य पुणरुत्तं ददुर इव भूमिपट्टम्मि॥ चरिअं। * // 174 // जाओ खणेण दीणो खयरकुमारोच्च नट्ठ वरविजो / गाढं वेविरदेहो मूढोव्व हिउव्व संजाओ॥१७५॥ अह तं तारिसरूवं | पुरिसं दटुं सुदंसणा भणइ / पाविट्ठ! किं न साहसि कत्थ कओ मह सुओ तुमए 1 // 176 / / सोवि अहोमुहवयणो होऊण ठिओन जंपई जाव / ताहे सो जणनिवहो विविहं उल्लविउमाढतो // 177|| एसो इन्भघरम्मी समागओ चोरियाए धणलुद्धो। अन्ने भणति | चोरो जइ ता सेजाए कि सुत्तो 1 // 178 // ता एस वसुमईए करण पैरदारियाए आयाओ। अन्ने भणति जारो जइ ता अंवित्ति किं | भणइ 1 // 179 // ता एस धणवइच्चिय विहिओ केणावि अन्नरूवेण / देवेण दाणवेण व केलीए पिएण मन्नामो // 180 / / अन्ने भणंति भूओ एस पिसाउन्च आगओ एत्थ। अम्हाण छलणहेउं एरिसरूवेण दुट्टप्पा // 181 // भो भो न एवमेयं भणति अन्ने उ किंतु निसुणेह / वसुमइयाए सील परिक्खिउं आगओ तियसो // 182 / / एमाइ बहुविगप्पं परोप्परं जा जणो समुल्लवइ / ताव य पियसहि ! | धारिणि ! निसुणसु जं तत्थ संजाय // 183 // केऊरहारअंगयविरायमाणो मणोहरसरीरो / सहसा पयडीभूओ भासुरदित्ती तहिं तियसो॥१८४॥ देवेण तेण भणिय निसुणह | एयस्स वइयरं भद्दा ! / अवियाणियपरमत्था करेह किं बहुविहविगप्पे! // 185 // एसो हु पावकारी सुमंगलो नाम नहयरो आसि / साहियबहुविहविजो विजाहरनयरसुपसिद्धो॥१८६।। अह अन्नया कयाइवि भममाणो इच्छिएसु नयरेसु / एसो इत्थ पुरीए समा-2 1 जापम् / 1 उल्ललति-उन्नमति / 3 इत इव / 4 अधोमुखं अधस्ताद् वदनं यस्य सः / 5 चोरिका-चौर्यम् / 6 कृतेन तदर्थ-वसुमत्यर्थमिति यावत् / 7 पारदारिकतया / 151 // For Private and Personal Use Only