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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी- तीए मुद्दाए संजुत्तो // 42 // कन्ने होउं तीए आसन्नसहीय साहियं एयं / अवनिदएण दुक्खइ सीसं किर कणगमालाए // 8 // ता* पञ्चमो चरि। एसा खणमेगं असोगवणियाइ सुवह लग्पत्ति / तुम्हे एत्थ ठियाओ जहासुहं चेव अच्छाह // 44 // वत्ते पुण पेक्खणए जाणाविन्जाउ परिच्छेओ। अम्ह सिग्धंति / एवं मणिउं तीए उद्यविषो वित्तवेग! अहं // 8 // ततो तीए समयं पवरधरुज्जाणतिलयभ्याए / क्यिसंतसुरहि॥४८॥ | मंजरिमयरंदामोपहियाए // 8 // पचो स्मपीपाए असोगवणियाए सहरिसं तीए / दिनम्मी आसणम्मी उपविट्ठो, सावि मह पुरंथी Elic7|| अह सा सज्झसमरिया जाहे न चएइ किंचि वज्जरिउं / ताहे नियचपउत्ती सव्वावि हु चित्तवेग! मए // 88 // पुच्वं जा || तह कहिया तीएवि हु सा मए समासेण / कहिया य जाव इत्थं इत्थीरूवेण आयाओ // 89 // सुंदरि! तुज्ज्ञ विओगे गुरुदुक्खं माणसं मए पत्तं / भमिओ तुम निमित्ते सव्वेसुवि खयरनयरेसु // 90 // ता लज्जं मोत्तूणं साहसु किं तुझ नामधेयंति / कम्मि कुले तुह जम्मो किंवा नामं तु ते पिउणो ? // 91 // कहवि पुरे इह पत्ता पभूयलोयस्स मॅज्झयारम्मी / इत्थीरूवोवि अहं विनायो सुयणु! कह तुमए ॥९२१एवं च मए मणिया कहवि हु उज्झित्तु सज्जसं वाला / मणयं खलंतवयणा अह एवं भणिउमाढत्ता // 93 | आर्यनसु मणवल्लह ! कहेमि सव्वंपि जं तुमे पुढे / तुम्ह सुपसिद्धमेव हि नयरं सुरनंदणं ताव // 14 // तत्थासि सुविक्खाओ पहंजणो नाम खवररायत्ति तस्स य पवरो मंती अइकुसलो नीइसत्येसु // 95 / / पहुणो य दढं भत्तो बुद्धीए चउम्बिहाए संपनो। स्यो विस्सा- | | सपयं आसि पुरा मेहनाउत्ति // 16 // युग्मम् // तस्स य परिणी पवरा पइब्बया स्वसंवयाकलिया / उत्तमकुलप्पसूया इंदुमई नामक // 48 // कणे / 2 भपनिद्रकेण-निद्राया अभावेन / 3 दुःख करोति दुःखयति / 4 स्वपिति / 5 ज्ञाप्यताम् / / सुहया-सुभगा सुखदा वा / 7 मध्ये। * आकर्णय / For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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