________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * मोहणट्ठा परकज्जसमुज्जओ धीरो // 38 // एवं च मए भणिया सहरिसहियया करेइ तं सव्वं / अह दोवि निलुकाई पुण रवि मयणस्स पट्टीए // 39 // चित्तमईवि य तीए नीसेसं निविसिऊण नेवत्थं / उग्घाडिउं दुवार आरूढो अत्ति सिवियाए॥४०॥ अह तम्मि गए लोए नीसदं जाणिऊणसं भवणं / भणिया य मए एसा सुंदरि ! किं इण्हि कायव्यं // 41 // ओणयंमुहीए तीए सज्झसवसकंपमाणगैचाए / कहकहवि हु उल्लविशओ खलंतअव्वचकाणीए // 42 // गुरुविरहपीडियाए पिययम ! तं पाविओ तुडिवसेण / कुणसु संयं जं जुनं सरणम्मि समागया तुज्झ // 4aa युग्मम् / / एवं तीए भणिए गंधब्यविहीए सा मए पाला। परिणीया तक मयणं देवं काऊण सक्खिणयं // 44 // अपणिन्तु कमेण तो सशस्त्रमेह विविहवयणेहिं / खणमेगं रमिऊणं सुचो वालिमिऊण त्यं | // 45|| निदाविगमे य भए पजरियं सुषणु वञ्चिमो इहि / एरिसमावरिऊणं न हु जुत्तं अच्छिउं एत्थ // 46 // दीहं नीससिएणं अह* भणिय तीई हिययदइयाए / हा अजउत्त! जुत्तं कमपत्रं बांसि मह मरणं // 47 // मज्झ निमित्ते पाविसि सामिय! गरुयमावई | इण्हि / नहवाहणो पंथडो विजावलपिओ तहय // 48 // नासंताणवि अम्हं न नाह ! सरणं तु विज्जए किंचि / सा तुह नहरिणिरूवा | जाया परमत्थओ अहयं // 49 // तुहविरहतावियाए न आसि मह सामि ! तारिसं दुक्खं / जं तुह नाह! वित्तिं संभाषिय इहि | संजायं // 50 // लद्धोवि नाह! कहवि हु मज्झ अउबाए होसिन हु इहि / पुनरहियाण अहवा पत्नपि हु विडए सहसा // 51 // भो सुप्पइट्ठ! एवं भणिउं अवलम्बिऊण मह कंठे। गुरुदुक्खनिम्भराए रुमं अह तीए बालाए // 52 // ततो य भए भणियं सुंदर 1 निवेश्य / 1 द्वारम् / 3 भवनतमुखया तया / 4 गत-गात्र-शरीरम् / 5 साक्षिकम् / 6 अपनीय-पूरीकृत्य / * आर्यपुत्र ! / 8 प्रचण्डः / . दप्पिओ दृप्तः / 1. विपत्तिः। 11 विघटते नश्यति / For Private and Personal Use Only