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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरसुंदरी चार। मरामि संपड कुसुमाउह! तुज्झ पुरओ हं॥२२॥ तिसृभिः कुलकम् // मा मह भणिज कोवि हु विहियमजुत्तंति कणगमालाए / ए|चियमित्तं कालं विमालियं जेण आसाए // 23 // इहि पुण न हुसका काउं भंग तु नियपेइनाए / तं मोत्तुं हिययदइयं न लग्गएपरिच्छेओ। मह करे अन्नो // 24 // अन्नं च देवयाओ! अलियं जंपति नेय कइयावि / तंपि हु अन्नह जायं मज्झ अउन्नहिं पावाए // 25 // अहव | | कवडेण केणवि पिसायरूवेण वंचिया तइया। नहवाहणभत्तेणं अहवा खयरेण केणावि // 26 / / ता संपयंमि मा होज्ज मज्झ अभिवंछियत्थवाघाओ। भयवं! तुह प्पसाया सिज्झउ मरणं अविग्घेण // 27 // पियविरहगरुयमोग्गरजञ्जरियमणाए मज्झ पावाए मरणं होज्जन होज्ज व अज्जवि आसंकए हिययं ? // 28 // पियविरहदुक्खसमणं लम्भइ मरणपि गरुयपुग्नेहिं / तं जइ हविज्ज इहि सुकयत्था होज्ज ता अहयं // 29 // एवं भणियं तीए मुक्को अप्पा अहोमुहो झत्ति / तुरियं गंतूण मए छिन्नो अह पासओ तीए॥३०॥ गहिऊण तयं अंके ताहे सणियं मए इमं भणिया / निज्जियसुरासुरिंदो तुट्ठो तुह सुयणु! रइनाहो // 31 / / असरिससाहसआवज्जिएण मयरद्धएण तुह सुयणु!। एयम्मि चेव जम्मे उवणीओ सो जणोएसो॥३२॥ किज्जउ कंठग्गहणं गाढं उकंठिओ जणो तुज्झ / एवं भणिया बाला लज्जाए अहोमुही जाया ॥३शा चित्तगईवि य ताहे समागओ तम्मि चेव ठाणम्मि / तत्तो य मए भणियं वरंमिचो | एस मह सुयणु ! // 34 // तुज्झ विओए सुंदरि ! अप्पवहे उज्जओ अहमिमेण / विणिवारिओ अकारणवच्छल्लजुएष धीरेण // 35 // | तुह पावणे उवाओ एसो मह साहिओ इमेणेव / एएण सहाएणं सिझिस्सइ इच्छियं अम्ह // 36 // कन्नासहावसुलहं उज्झित्ता सेझसं * | सुयणु! तम्हा / नियनेवत्थं सच्चं झत्ति समुप्पेसु एयस्स // 37 // काऊण तुज्झ रूवं जेण इमो सुयणु ! वच्चए बाहिं / परियणवि-| विगालितं विलम्बितमित्यर्थः / 2 पन्ना-प्रतिज्ञा / 3 अपुष्यैः / 4 वाघाओ=म्याधातः / 5 त्वरितम् / 6 शनैः। 7 आयर्जितः प्रसन्नः। सेत्स्यlokel तिमसिद्ध भविष्यति / 9 साध्वस भयम्। 10 बहिः। // 46 // For Private and Personal Use Only
SR No.020776
Book TitleSursundari Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhaneshwarmuni
Publisher
Publication Year
Total Pages292
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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