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सुलसा०
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बे. २२ दे देव ! आलोकने विषे जे मनुष्यो तमारा अति सुंदर अंगने पुष्पनी लता (माला) : सर्गमो. | ए करीने पूजे बे, ते मनुष्योना शरीरनी श्रागल विकसित एवां चामरो निरंतर विलास करे बे. अर्थात् तमारुं पुष्पथी पूजन करनारा मनुष्योने चामरादिक जोगो प्राप्त थाय बे ॥ २३ ॥ श्रलोकमां ते पवित्र मनुष्य हमेशां सवारे जिनेश्वर प्रजुनुं पूजन करे ये प्रसूनलतिका निरिहागमंकयंति तव 'देव सुचंगम् ॥ चामराणि "नियतं विलसंति, तत्पुराणि पुरतो "विकसंति ॥ २३ ॥ यो 'जिनाधिपतिपूजन मंत्र, प्रातेरेव विदधाति पवित्रः ॥ पूज्यतां तु जैनते स परत्र, सर्वसाधुजनशस्यचरित्रः ॥ २४ ॥
शलेय चरणांबुजशेषां, 'ये वहति शिरसा हैतदोषाम् ॥ तपत्रममलं "किल तेषां, मस्तकोपरि "विनाति समेषाम् ॥२५॥ बे, ते मनुष्य, सर्व साधु जनोने वखाणवा योग्य बे चरित्र जेनुं एवो थर परलोकने विषे पूज्यपणुं पामे छे. ॥ २४ ॥ जे मनुष्यो पापने नाश करनारा त्रिशला माताना पुत्र ( श्रीमहावीरस्वामी ) ना चरण कमलनी शेषा (रज) ने मस्तके करीने बहन करे
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