SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org बे, ते सर्वे मनुष्योना मस्तकनी उपर निर्मख एवं बत्र निश्चे शोने .अर्थात् जिनेश्वर ना चरणानी रजने सेवनारा चक्रवर्तीनी पदवीने पामे डे. ॥२५॥ श्रालोकने विषे जे मनुष्य पोताना मनमां निरंतर पापने कापी नांखवामां दातरडा समान जिनेश्वर प्रजुना नाम रूप मंत्रनुं ध्यान करे , ते जविक जीवनुं पृथ्वीने विषे पाप वली जाय जे. ध्यायतीद 'जिननामसुमंत्र, यः सदा मनसि पापलवित्रम् ॥ दह्यते चे रितं नविकस्य, बोनवीति भविकं भुविर्तस्य ॥२६॥ स्थापयात्मपदपद्मयुगं मे, मानसे 'जिनपते वसीमे॥ "रंरमीति परमात्ममरालस्तंत्र मे खेलु यथा शमशाली॥२०॥ अने कल्याण थाय . ॥ २६ ॥ संसारना सीमाडा रूप हे जिनेश्वर! तमे म्हारा मन रूप मान सरोवरने विषे पोताना बे चरणकमलने स्थापन करो, के जे प्रकारे शमे करीने सुशोजित एवो म्हारा परमात्मा रूप हंस, ते रणकमलने विषे निश्चे कीडा करे. ॥२७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020772
Book TitleSulsa Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidya Shala
Publication Year1899
Total Pages228
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy