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सुलसाने विषे वृक्षोनी पंक्तिश्री शोजित ने तीर (कांग) ना लागो जेना एवां जलाशयो सर्गरलो.
(तलाव विगेरे जलनां स्थानो) “ मगधदेशनी" श्राश्चर्यलक्ष्मीने जोवा माटे जाणे पृथ्वीमा हजारो नेत्रो प्रगट थयां होयनी ! एम शोने दे. ॥७॥ जे मगधदेशने विषे श्रेष्ठ ( निर्मल) जलथी नरेलां अने उत्तम वर्नुलाकार ( गोलाकार ) पाठ्योथी व्याप्त
सरांसि यस्मिन् सुपयोनृतानि, सवृत्तपालीकलितानि नांति॥ नूमीमुखालंकरणाय किंनु, न्यस्तानि ताडंकविनूषणानि॥५॥ प्राकारवाराः प्रविनाति तारा, जांबूनदोच्चैःकपिशीर्षसाराः ॥
सर्वत्र रौप्याणि सुवर्णचूडानीवांकरोविलयानि यत्र ॥२०॥ एवां तलावो, जाणे पृथ्वीना मुखने शोजाववा माटे स्थापन करेलां कुंझलनां आभूषणो॥ ए ज होयनी ! एम शोने . ॥ ॥ जे मगधदेशमां सर्व स्थानके सुवर्णना ऊंचा श्रेष्ठ कांगरावाला एवा गढोना समूहो, खाणनी पृथ्वी रूप स्त्रीना हाथनां रूपानां सुवर्णना कांगरावाला कंकणो ज होयनी ! एम शोने दे. ॥ १० ॥
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