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जे मगधदेशने विषे श्रेष्ठ मेखलाउँथी अत्यंत मनोहर अने घणो ऊंचो वैज़ार ना मनो पर्वत, जाणे समुख रूप वस्त्रना श्राछादनवाली पृथ्वीनो गोलपणाथी मनोहर एवो केडनो पालो जाग ज होयनी ! एम शोने . ॥ ११ ॥ जे मगधदेशने विषे ।
यत्रांतिरम्यो वैरमेखलानिः, प्रोत्तुंगवैनारगिरिविनाति ॥ समुश्वस्त्रावरणमायाः, नितंबबिंबः 'किल उत्तशाली ॥११॥
आवेष्टिता यत्र तटोपविष्टमरालशब्दान्वितनिङ धैः॥ "गिरीपादाः प्रतिनाति नूमीपादा रेणन्नूपुरमंमिता वा ॥१॥ ये देशमासाद्य महीमहेला, रत्नानि सूते विविधानि नित्यम् ॥
आख्यायते सर्वजनेन तस्मात्सौ रनगर्नेत्यधुनापि नाम्ना ॥ १३ ॥ जलाशयोना तटे बेवेला हंसना शब्द युक्त करणाना समूहे करीने व्याप्त एवा वैनार | पर्वतनी पासे रहेला बीजा न्हाना पर्वतो, जाणे शब्द करता कांफरोधी अलंकृत | थएला पृथ्वी रूप स्वीना पग ज होयनी ! एम शोने जे. ॥१५॥ पृथ्वी रूप स्त्री जे
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