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श्रा नरतक्षेत्रमा गाम, रत्नादिकनी खाण, झोणमुख श्रने नगरोधी श्रेष्ठ, तथा अनेक किसाथी शत्रुऊने अगम्य (न जवाय तेवो), तेम ज बाग, वाव्य, पर्वत श्रने कूवाथी मनोहर एवो मगध नामनो देश . ॥ ६ ॥ जे मगधदेशमां विशाल एवा पृथ्वी रूपी
हवे आठ काव्ये करीने मगधदेशनुं वर्णन करे बे. अस्तीह देशो मंगधानिधानो, ग्रामाकरणोणपुरप्रधानः॥
गैरनेकैरपरैरंगम्य, आरामवापीनगकूपरम्यः॥६॥ पुरेपुरे जैनविहारराजी, संराजते यत्र सुवर्णकुंना॥ महीमहेलाहृदये विशाले, दारावली कांचन निर्मितेव ॥७॥ टेदावलीमंमितकूलदेशा, राजंति यस्मिन् सलिलानिवेशाः॥
आश्चर्यलक्ष्मीप्रविलोकनाय, चतुःसहस्रा विदिता इवोा ॥७॥ खीना हृदयनां जाणे सुवर्णथी बनावेली हारनी पंक्ति ज होयनी ! एवी नगर नग रने विषे सुवर्णना शिखरोवाली जैनमंदिरोनी पंक्ति शोने . ॥७॥ जे मगधदेश,
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