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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाखवियघणघाइकम्मो उप्पाडइ केवलं नाणं ॥२१७॥ विहरित्तु बहुं कालं सचरियकहणेण नाणमुवइसिउं । कम्मकलंकविमुक्को सो पत्तो सासयं ठाणं ॥२१८॥ जंपइ विजयकुमारो सुदंसणे! नाणदाणपरमत्थो। एवं दिटुंतजुओ समासओ तुह मए कहिओ ॥२१९॥ IE दुइयं तु अभयदाणं तं पुण अभएण सबजीवाणं । अभओ य दयामूलं दयाइ धम्मो पसिद्धमिणं ॥२२०॥ सबजियाणं जीयं इ8 जह होइ दुक्खियाणं पि। न तहा भज्जा न सुया न बंधवा नेव लच्छीओ ॥२२१॥ बलरूवजुषणेण य हवंति जे तिहुयणे वि अन्भहिया। जुवइमणजणियहरिसा ते सधे अभयदाणेणं ॥२२२॥ रजं पि चयइ जीवो जीवियहेउं न त तं तु रजट्ठा । महइ जियं भयभीओ अमिज्झकीडो वि न हु मरणं ॥२२३॥ 5 यतः-अमेध्यमध्ये कीटस्य सुरेन्द्रस्य सुरालये। समाना जीविताऽऽकांक्षा तुल्यं मृत्युभयं द्वयोः ॥२२४॥ । एवं च-सधणाण निद्धणाणं दुत्थियसुहियाण बालवुड्डाणं । सबाण पिया पाणा ता पाणा सबहा रक्खा ॥२२५॥ जे अंधकाणमया हीणंगा पंगुला विणदुनहा । करचरणसडियनासा ते सधे जीवहिंसाए ॥२२६॥ करचरणनासकण्णुट्ठसीस18| पुच्छाइच्छेयणं जं च । नयणुद्धारो उलंबणं च हिंसाफलं सर्व ॥२२७॥ नरतिरियनरयवासे वहबंधुक्कत्तणाइविसहंता। हिंडंति आरडता जीवा जीवाण दुक्खकरा ॥२२८॥ मारंति निरवराहे जीवे खायंति जे नरा मंसं । ते निरयतिरियदुक्खं अणंतकालंद पि विसहति ॥२२९॥ नाऊण इमं भयभीरुयाण जीवाण सरणरहियाणं । दायबमभयदाणं जीवेहि सया सुहत्थीहिं ॥२३०॥ सुदंस०७ १ काहति । २ उडम्बनम्-उद्धन्धनम् फांसीलगाकर कटकना। HI For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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