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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ ३६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तह यलरतिंदिवस पि पढणनिरयस्स । नाऽऽगच्छइ किच्छेण वि इकं पि हु अक्खरं तस्स || २०१|| परिसंतो ओझाओ एवं अण्णो वि जाव पंचसया । तो सिट्ठी तस्स सुआ वि सोयभरनिब्भरा जाया ॥ २०२ ॥ अण्णदिणे तम्मि पुरे अइसयनाणी कमेण विहरंतो । नागदिवायरसूरी बहुपरिवारो समोसरिओ ॥ २०३ ॥ तण्णमणत्थं सिट्ठी घणंजओ पुत्तसंजुओ पत्तो । नमिउं गुरुं निसण्णो पत्थावे पुच्छए एवं ॥ २०४॥ भयवं ! मह पुत्तेणं इमेण किं दुक्कयं कथं पुत्रिं ? । नाऽऽगच्छइ जेणिक्कं पि अक्खरं कवि एयस्स ॥ २०५ ॥ तो गुरुणा वागरिओ पुवभवो तस्स सिट्ठिपुत्तस्स । जह तेणाऽऽयरियपए नाणं च विराहियं सुइरं ॥ २०६ ॥ तक्कम्मविवागेणं नाणं एयस्स भद्द ! न वि एइ । इय सोउ ऽणंगदत्तो जाईसरणं समुप्पण्णो ॥ २०७ ॥ भयसंभंतो सो पुण पणमित्ता विष्णवेइ गुरुमेवं । भयवं ! कहसु उवायं जेण तयं खिज्जए पावं ॥ २०८ ॥ भणइ गुरु वच्छ ! तए सबपयत्तेण नाणवंताणं । वंदणनमंसणाईवेयावच्चं विहेयवं ॥ २०९ ॥ तह दाणं दायबं जहारिहं फलयपुत्थयाईणं । नाणस्स पूयणं लेहणं च सत्तीइ काय ॥२१०॥ इय सोउं गिहिधम्मं गहिओ सो पिउजुओ नमिय सूरिं । संपत्तो नियगेहे विहरइ अण्णत्थ सूरी वि ॥ २१२१ ॥ गुरुवइङ्कं सवं सम्मं परिपालिडं कयाइ इमो । पवज्जं पडिवण्णो सिरिगुत्ताssयरियपयमूले || २१२|| तिघतवचरणरओ विसेसओ णाणवंतभत्तिपरो । नाणबहुमाणसारो नाणऽब्भासे कयपयत्तो ॥ २१३ ॥ नाणावर कम्मे कमेण पत्ते खओवसमभावे । सुबहुं पि सुहेण सुयं पढइ तहा मुणइ तस्सऽत्थं ॥ २१४ ॥ कमसो पयाणुसारीत्तणेण सुयजलहिपारगो जाओ। सो ऽणंगदत्तसाह सूरिपए ठाविओ गुरुणा ॥ २१५ ॥ पंचपमायविमुक्को पंचविहाऽऽयारपालणपहाणो । पंचविहे सज्झाए पवत्तयंतो भवियलोयं ॥ २१६ ॥ कइया वि खवगसेटिं आरूढो सुक्कज्झाणजलणेण । For Private and Personal Use Only विजयकु मारसरूव प्परूवग नामो अट्ठ मुद्देसो । ॥ ३६ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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