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सुदंसणाचरियम्मि
॥ ३७ ॥
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अवि य-विजाइ नाणदाणं साहीणं तह धणेण धणदाणं । रोराण वि साहीणं एवं खलु अभगदाणं ति ॥ २३१|| पारेवयस्स दाउँ भयसंतत्तस्स अभयदाणमिणं । जाओ मेहरहनिवो चक्की तह धम्मचक्की वि ॥ २३२॥
तहाहि—इह दीवे पुञ्वविदेहमंडले पुक्खलावईविजए। सीयानईइ तीरे नयरी पुंडरगिणी अस्थि ||२३३|| ओहि - जुओ संतिजिओ दसमभवे पियमईइ अंगरुहो । घणरहतित्थयरसुओ मेहरहो नाम तत्थ निवो ॥ २३४ ॥ तस्स पिया पियमित्ता ताण सुओ मेहसेणनामु त्ति । राया कयाइ पत्तो उज्जाणे देवरमणम्मि ||२३५|| पारद्धे पिच्छणए तप्पुरओ तण्णिउत्तलोएहिं । इत्थं तरम्मि भूया करंति अइविम्हयकरं तं ॥ २३६ ॥ जा ते नच्छंति तहिं पवरविमाणं नहेण ता पत्तं । | तत्थेगं वरपुरिसं वरजुबइ संजुयं दद्धुं ||२३७|| पियमित्ता भणइ निवं देव ! इमा का मणोहरा नारी ? । को व इमो वरपुरिसो ? केण व कज्जेण इह पत्तो ? ॥ २३८ ॥ अह जंपर मेहरहो इह दीवे भारहम्मि खेत्तम्मि । मलया नामेण पुरी उत्तरसेड्डीइ वेढे ॥ २३९॥ विज्जुरहो तत्थ निवो माणसवेगा पिया य से ताणं । सीहरहो नाम सुओ वेगवई तस्स वरभजा || २४० ॥ कइया वि भवविरत्तो पुत्तं रज्जे ठवित्तु सीहरहं । गुरुपासे निक्खमिडं विजुरहो सिवपयं पत्तो ॥ २४१ ॥ विज्जाहरचक्कवई कयाइ चिंतइ निसाइ सीहरहो । जम्मो मह अकयत्थो जह रण्णे मालइकुसुमं ॥ २४२ ॥ जं न जिणो | दिट्ठो मे कयाइ न य पूइओ विहरमाणो । तह तम्मुहकमलभवा अभियसमा देसणा न सुया ॥ २४३ ॥ तो गंतुं सकलत्तो धायइडम्मि वरविमाणगओ । अवरविदेहे विजए सुवग्गुनामम्मि खग्गपुरे ॥ २४४ ॥ नामेण अमियवाहणजिणं तहिं पणमिडं सुहनिसण्णो । धम्मं सोउं तुट्ठो वंदिय सामिं पडिनियत्तो ॥ २४५॥ जा एइ इत्थ उबरिं ता खलियं तस्स तं वर
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विजयकु
मारसरूव
प्परूवग
नाम अट्ठ
मुद्देसो ।
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