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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमु सुदंसणा- सोमाभिहाणवणिएण। साहेवि तीइ वत्था, समप्पिया देव ! नियपिउणो ॥१३४॥ जा जयवम्मनराहिवधूया नामेण सीलवइचरियम्मि आसि सीलवई । साऽहं संपइ नामेण सुंदरी इत्थ विक्खाया ॥१३५।। नामस्स य परिवडिया, तुह भवणे मुहपियाई संविहाणो है। कुबंती। सिरिचंदगुत्त! चिट्ठामि इच्चिरं निव! परायत्ता ॥१३६॥ पंचंतवासगुरुदुक्खदुक्खिया सयलसुक्खपरिचत्ता । सानियसयणवग्गचुक्का, चिट्ठामि नरिंद! दुक्खेण ॥१३७॥ ताव कुलीणा गुरुया विउसा सोहग्गरूवगुणकलिया। सुहधम्म- देसो। सीलनिरया, जा नियठाणं न मुंचंति ॥१३८॥ अवि य-हिमगिरिवरप्पसूया, रयणायरसंगया जयपयडा। सुहिया वि सया महिला वहइ जलं अमरसरिअब ॥१३९॥ ता नरवर ! नियदुक्खं, साहिजइ कहं जणमि एमेव? । पत्थावमुवगयं तुम्ह साहियं गउरवाहितो ॥१४०॥ सहि ! चंदलेहि ! द्र तइया, तए विजं पढमदंसणे पुढे । तं अज मए सवं एयं तुह पणयओ कहियं ॥१४१॥ अहव कुलदेवयाए न पालियं जमए तया वयणं । तं एयं दूसहवज्जपडणदुक्खं मए पत्तं ॥१४२॥ ता जे विरइविरत्ता, रइमयमत्ता विसायगयचित्ता। विसयासत्ता सत्ता निव! पत्ता पउरदुक्खाई ॥१४३॥ दिह्रवि विसयविसए, जाया मह देव! एरिसा वत्था । जइ सेविजति पुणो तो दुक्खं दिति नरयंमि ॥१४४॥ एरिसदुक्खाई मए, विसयपसाएण देव! पत्ताई । विसयसुहभीरुयाए इमीइ3 साहेमि कहं विसए? ॥१४५॥ एसा निव! तुह धूया, सुदरिसणा मुणियपुवभवदुक्खा । मज्झ वयणेण सहसा, पाणिग्गहणं| कहं महइ? ॥१४६॥ सत्थत्थनयसमत्था, जिणिंदधम्मोवलद्धपरमत्था । संभरियपुवजम्मा, परम्मुही विसयसुक्खाणं ॥२०॥ १ पञ्चत. अनार्यदेश। २ काङ्गति । RREARRIER-GREE RSS RONICS For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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