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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है गब्भो समुभूओ॥४०॥ तो संतुट्ठा देवी, सुहेण उबहइ जाव तं गभं । ता डोहलओ तीए, जाओ सुहसूअगो पवरो से P८१॥ रत्थाचउक्कचच्चरतिगेसु दुहियाण देइ दाणाई। जिणमंदिरेसु अट्ठाहियाओ महिमा करावेइ ॥२॥ साहूण भत्त-10 पाणोसहासणाईणि परमभत्तीए । अणवरयं कालोचियफासुयदाणाई सा देइ ॥८३॥ हरिसियहियया देवी, संपुन्नमणो-टू है रहा इमं भणइ ।भुवणत्तए वि सुंदरि! सुहओ तुह संतिओ धम्मो ॥८४॥ भणियं च सुंदरीए, धम्मो जो जिणवरेहिं पण्णत्तो। सुच्चिय सिवसुहमूलं, मोहस्स वियंभियं सेसं ॥८५॥ उप्पायठिइविणासो, जीवाणं कम्मपरिणई विविहा । तह पुग्गलपरि णामो, जाणिज्जइ जिणमए चेव ॥८६॥ तह जीवदया सम्मं, नजइ सत्तीइ किज्जइ सुयणु!। देवीइ तओ भणियं, अवितहमेयंदू हैन संदेहो ॥८७॥ इय तीए देवीए, सुहेण वोलिंति जाव नव मासा । ता सोहणम्मि दिवसे, सुमुहत्ते पसविया देवी ॥४॥ गुरुदियहे रिक्खे वीसइम्मि सुहए सुसिद्धिजोगेसुं । उच्चट्ठाणगएसुं, गहेसु सुरगुरुपमुक्खेसु ॥८९॥ सयलजणजणिय-15 हरिसा, पीइकरा जणणिजणयपमुहाणं । संपुन्नंगोवंगा, जाया से सोहणा धूया ॥१०॥ वद्धाविओ नरिंदो, कमलाधाईइ तुरियगमणाए । रन्ना वि तीए दिन्नं, सवंगाहरणमविअप्पं ॥९१॥ आइटुं नरवइणा, वद्धावणयं च सिरिउरे नयरे । मिल्हाविया उ गुत्ती, माणुम्माणाण वुड्किया ॥९२॥ कणगमयखंभसंठियमणिमयपंचालियापवंचेण । मणिरयणामयतोरणम-13 ऊहमालाहिं चिंचंइयं ॥९३॥ मंचाइमंचकलियं, वंदणमालासहस्ससंकिन्नं । सुरहिघणघुसिणरसपसरसित्तनीसेसभूमितलं |॥१४॥ सुविरइयहट्टसोह, चंदणघडसुकयचारुसोहिल्लं । ठाणहाणारंभियअणेगवरनाडइज्जजुयं ॥९५॥ डझंतागुरुगुरुमघमघंसुदंस०२ विशतितमे पूर्वाषाढानक्षत्रे। २ शोभितम् । ३ घुसिण• घुसण-केसर। ASHOCOLORDCROSPERSONALISA BROADCASEACHERS RSSIRSAE% For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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