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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा-1 ॥६५॥ इय सोउं भणइ इमा, अवितहमेयं कहं तए नायं? | तो सुंदरीए निसिगयवुत्तंतो साहिओ सबो ॥६६॥ भणियंजम्मणपबचरियम्मिच तीइ सुविणं-तरस्स एयस्स सुयणु! तक्केमि । दहपंचदियहमज्झे, निस्संदेहं फलं जम्हा ॥६७॥ सुहमुत्ता पढमनिसाइ, धसंबद्धो |जे नरा सुविणयाई पिच्छति । पावेंति ते फलं वरिससूइयं नूण सुहमसुहं ॥६८॥ बीयम्मि रयणिजामे, फलाई पावेंति बीओ अट्ठमे मासे । वरिसद्धे तह तइए, चउत्थजामम्मि पुण पक्खे ॥६९॥ जो पिक्खइ अप्पाणं, व्हायं लितं अलंकियं हसिरं । उद्देसो। गायंतयं च सुमिणे, सो लहइ अणत्थसंघायं ॥७०॥ जो पुण असुइविलित्तं विलीणगत्तं सयं तैयं नियइ । सो पावइ अन्भु-18 |दयं, अचिंतियं दिवजोएणं ॥७॥ हयगयरहवसहगयं, जो अप्पं नियइ पवरविहगं वा । कणयमयं वा वत्थु, तस्स पभूया हवइ रिद्धी ॥७२॥ जो पउमसरवरगओ, नलिणीपत्तम्मि पायसं हिट्ठो । भुंजइ सो लहइ लहुं, रजं दासो वि पुढवीए ॥७३॥ हजइ कहवि देवभवणे, धवलहरे खीरपायवे चडिओ। पडिबुज्झइ ता पावइ, रिद्धिं सक्कारसम्मा ॥७॥ सरदहलीलाइ लहुं, भुयाहि जो तरइ सागरमपारं । नरसुरसुहाइ भुत्तुं, कमेण सो लहइ सिद्धिसुहं ॥७५॥ वेयालभूयडाइणीनाहरसिंगिसुतिक्खसत्थेहिं । भेसिज्जइ जो सुविणे, सो पुण पावइ महावसणं ॥७६॥ जेसिं तु सुरहिसियकुसुममालिया कोवि. खंधदेसम्मि । पक्खिवइ रयणिविरमे, तेसिं रिद्धीय पुत्ता य॥७७॥ चंचुकयकुसुममाला, कणयमया सवलिया सुविणयम्मि। जं पत्ता तुह भवणे, भविस्सए तुज्झ तं धूआ॥७८॥ सियसुरहिकुसुममाला, पक्खित्ता जं च तीइ तुह खंधे। तं निम्मलसी- ॥६॥ लगुणा, सा तुज्झ सुहंकरा होहिइ ॥७९॥ निसुणेवि इमं देवी, तुट्ठा दिवसाई जा गमइ कइवि । ता कम्मधम्मजोएण, तीए5 सयं तयं० स्वको स्वचं। २ नाहर० व्याघ्र । CRORARRIORSEENERGRA SARAM For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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