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जासु ॥ ४९ ॥ सम्माणिऊण सिट्ठी, विसज्जिओ अह गिहम्मि तत्थ दिणा । वच्चंति ताण दुण्हवि, सुहेण नणु एगचित्ताणं ॥५०॥ अण्णम्मि दिणे सा सुण्णमाणसा जाव चिट्टए देवी । ता सुंदरीइ भणिया, सुयणु ! तुहं केरिसी चिंता ? ॥५१॥ अवमाणं किं नेहच्छलेन तुह दंसियं सदइएण ? । पणइजणेणं केणवि, किं वा तुह खंडिया आणा ! ॥ ५२ ॥ इय सोउं तीइ उत्तं, न इमं दुक्खस्स कारणं किंतु । सुंदरि ! सत्तसुयाणं, एगावि सहोयरी नत्थि ॥५३॥ ता एगा मह धूआ, पुण्णनिओगेण होज्ज जइ | कहवि । तद्दियहाओ मह विसयसंगसुक्खेहिं पज्जत्तं ! ॥ ५४ ॥ ता सुयणु ! कुणसु तं किंपि वइअरं ओसहं व मंतं वा । एगा मह हवइ सुया, जेण लहुं तुह पसाएणं ॥ ५५॥ इय सुणिय सुंदरीए, पयंपियं नणु ममावि जणणीए । पुत्तत्थे बहुया देवयाओ आराहिया बहुसो ॥ ५६ ॥ विहियाई तिलयाई, ण्हाणाई ओसहाण पाणाई । तह वि न जाओ मणनयणनंदणो नंदणो तीए ॥५७॥ ता सुयणु ! विउलरिद्धिओ हुंति पुत्ता य पत्तदाणेणं । देहं च वाहिरहियं, पाविज्जइ अभयदाणेणं ॥५८॥ नवरं कुलदेवीए, विहीइ आराहणं तुमं कुणसु । अज्जरयणीइ एसा, संसइ दाणं नियाणं वा ॥ ५९ ॥ भणियं च | चंद लेहाइ, सुयणु ! तुह संतियं इमं कज्जं । जो तुज्झ कुलदेवो, मज्झवि सो अज्जदियहाओ ॥ ६०॥ तो गंतुं सिट्टिगिहे, उववासं सुंदरीइ काऊण । सिरिमुणिसुबयतित्थे, नरदत्ता सुमरिया देवी ॥ ६१ ॥ तो देवी अप्पाणं, दंसिय इय भणइ तुज्झ भइणीए । होहिइ धूआ एयं च सुविणयं पाविहिइ सा उ ॥ ६२ ॥ कहिऊण तीइ तं तह, सेसं दारं तिरोहिया देवी । तो सुंदरी पहाए, गिहे गया चंदलेहाए ॥ ६३ ॥ देवीदिण्णं सेसं, तीए हत्थम्मि दाउं इय भणियं । होहिइ तुह धूआ खलु, जं इय दिट्ठो तर सुमिणो ॥ ६४ ॥ कणयमयसवलियाए, निसाविरामम्मि सुहष्पमुत्ताए । चंचूई कुसुममाला, खिविया तुह खंधदेसम्मि
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