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मुक्ककुसुमतंबोला । इक्कारसघडियाओ गयसबरसब जा ठाइ ॥ १७४॥ ता धणवईइ दहुं पच्छा पच्छाणुतावभरियाए । लद्धो मए ति भणितीइ अप्पिओ तीइ सो हारो ॥ १७५ ॥ लद्धम्मि तम्मि हारे अन्भत्थिय घणवई तओ तीए । इक्कारसदीणारा | दिण्णा लच्छीइ तुट्ठाए ॥१७६॥ तीइ पुण घणवईए परधणपरिभोगमुक्कमुच्छाए । तेहि उ दीणारेहिं कराविया जिणहरे पूआ ॥ १७७॥ बंधिन्तु मणुस्साउं सुबोहिबीयं च अज्जियं कमसो । मरिऊण धणवई सा सीलमई इह तुमं जाया ॥ १७८ ॥ पुवभवदुक्कएणं तेणं हाराऽवहारजणिएणं । इक्कारसवरिसाई मणोदुहं दुस्सहं पत्ता ॥ १७९ ॥ जिणपूआपुण्णेणं तेणं सुहसंपयं पुणो पत्ता । णिच्चलसम्मत्तगुणा गिहिधम्मपरा य संजाया ॥ १८०॥ लच्छी सा पुण मरिडं तुह कुलदेवी इमा समुप्पण्णा । तक्कम्मविवागेणं उवसग्गा तुह कया तीए ॥१८१ इय सोउं सीलमई जाई सुमरित्तु भणइ णमिय गुरुं । अहह !! भयवं ! विवागो कह असुहो ईसिपावरस ? ॥१८२॥ जंपइ मुणिचंद्रगुरू भद्दे ! ईसिं पि णणु अभद्दस्स । लब्भइ फलं दसगुणं सबजहणं पिजं भणियं ॥ १८३॥ वहमारणअन्भक्खाणदाणपरधणविलोवणाईणं । सबजहण्णो उदओ दसगुणिओ इक्कसि कयाणं १८४॥ तिबयरे उ पओसे सयगुणिओ सयसहस्सकोडिगुणो । कोडाकोडिगुणो वा हुज्ज विवागो बहुतरो य ॥ १८५ ॥ इय गाउं सविवेया भवसंभवदुक्ख भीरुणो भवा । मा हरह परघणाई मा भणह विरुद्धवयणाई ॥ १८६॥ अह सिरिपुंजो सिट्ठी मुणिचंदगुरुं पुणो वि णमिऊण । भणइ भयवं ! इमाणं साहसु पुत्ताण गिहिधम्मं ॥ १८७॥ भणइ गुरु सम्मत्तं इह पढमं तो अणुवया पंच । तिण्णि य गुणवयाइं चउरो सिक्खावयाई च ॥ १८८ ॥ मूलं दारं पइट्ठाणं आहारो भायणं णिही । दुच्छकस्साऽवि धम्मस्स सम्मत्तं परिकित्तियं ॥ १८९॥ लम्भइ लहु मुक्खफलं दंसणदढमूलधम्मरुक्खम्मि । दंसणपहाणदारा
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