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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणारियम्मि ॥ १३१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुहं पवेसो य धम्मपुरे ॥ १९० ॥ णंद वयपासाओ दंसणपीढम्मि सुप्पट्ठम्मि । धरणिव दंसणमिणं चरित्तजियलोग| आहारो ॥१९१॥ विरइरसो अविणट्ठो दंसणवरवइरभायणे ठाइ । मूलुत्तरगुणरयणाण दंसणं अक्खयणिहिब ॥ १९२॥ सम्मत्तं | पुण देवो गुरू य धम्मो य तत्थ इय देवो । गयरागदोसमोहो परमप्पा होइ अरिहंतो ॥१९३॥ पंचसमिया तिगुत्ता पवित्त| सीला सुसाहुणो गुरुणो । धम्मो य जिणुद्दिट्ठो जीवाइपयत्थसद्दहणं ॥ १९४ ॥ इय सम्मत्तं पडिवजिऊण सद्धाविसुद्धसजागा । पडिवज्जंति इमाई सत्तीइ दुवालसवयाई ॥ १९५ ॥ पढमे अणुवयम्मि दुविहं तिविहेण जावजीवाए। संकप्पियथूलणिरावराह जियघायपरिहारो ॥ १९६ ॥ कण्णागोभ्रूणासावहारस क्खिज्जगोयरं अलियं । थूलं परिहरमाणस्सऽणुवयं भण्णए बीयं ॥ १९७॥ थूलं सचित्ताचित्तत्थगोयराऽदत्तगहणविणियत्ती । खत्तखणणाइपरिवज्जणेण तमणुवयं तइयं ॥ १९८ ॥ कुणमाणस्स सदारे संतोसं अहव णरतिरिसुराणं । परदारे परिहरओ अणुवयं भण्णइ चउत्थं ॥ १९९॥ घेणधण्णखित्तवत्थूरुप्पसुवण्णे य कुंवियदुपए य। तिरिऐसु य प्पमाणं अणुवयं पंचमं तमिह ॥ २०० ॥ उड्डमहे तिरियम्मि य दिसासु चउमासगाइकालगयं । खित्तपरिमाणकरणं गुणचयं वुच्चए पढमं ॥ २०२ ॥ भोगोवभोगविसयं गुणवयं भण्णए इहं बीयं । सइ भुज्जइ त्ति भोगो सो पुष्कफलासणाइगओ ॥ २०२ ॥ उवभोगो उ पुणो पुण उवभुंजइ भुवणभूसणाइगओ । तो दुण्ह वि परिमाणं कायवं णिययइच्छाए ॥ २०३॥ भोयणओ वज्जेज्जा पंचुंबरिमाइयाइ दबाई | बावीसअभक्खाई बत्तीस अनंतकायाई ॥ २०४ ॥ तसजंतुविमिस्साई फलाइ फुलाइ तह य पत्ताई । संधाणयं च तस्थावराण जीवाण जोणि त्ति ॥ २०५ ॥ कम्मयओ पुण इंगालकम्मपमुहाइ पणरस विवज्जे । तह गुत्तिवालसूणाऽहिगारपमुहं च दुकम्मं ॥ २०६ ॥ अवज्झाणपमायाss For Private and Personal Use Only मूलुदिट्ठ प्पबंधप्प रूवगना सोलसमं उद्देसो । ॥ १३१
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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