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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मूलुट्टिप्पबंधक रूवगनाम सोलसमो उद्देसो। सुदसणा- यणाइणिरया जिणधम्मपरायणा हुँति ॥१५८॥ आम ति भणिय सिट्ठी तण्णयरिणिवं अणुण्णविय विहिणा । कारावइ चरियम्मि जिणभवणं लसंतगुरुसिहरधवलधयं ॥१५९॥ सिरिसंतिणाहपडिमा अप्पडिमा ठाविया तहिं रम्मा । तीइ पइट्ठाइमहे | भत्तीए तेडिओ संघो ॥१६०॥ घोसाविया अमारी विहियं साहम्मियाण वच्छल्लं । मग्गणगणाण दिण्णं दाणं मणवंछिय॥१३ ॥ भहियं ॥१६॥ सिट्ठी परितुट्ठमणो सकुडुवो जम्मजीवियस्स फलं । मण्णंतो य अणुदिणं जिणभवणे कुणइ इय पूर्व 13॥१६२॥ णिम्मल्लकुसुमपूर्यणआरत्तियघूवकवर्पढणकरा । छसुया दो चामरधरा दुण्णि य वायंति आउजं ॥१६॥ सिट्ठी दतह जिट्ठसुओ दुण्णि वि ण्हाविंति तत्थ जिणणाहं । जम्माभिसेयपमुहं वहूहि सह भणइ सीलमई ॥१६४॥ एवं च तस्स सकुटुंबयस्स सिद्विस्स तुट्ठहिययस्स । वच्चंति के वि दिवसा सुहेण सद्धम्मणिरयस्स ॥१६५॥ अह अण्णदिणे तीए कायंदीए पुरीइ उजाणे । मुणिचंदो णाम गुरू केवलणाणी समोसरिओ ॥१६६॥ तण्णमणत्थं सिट्ठी सकुडुबो आगओ सपुर|लोओ। विहिणा वंदित्तु गुरुं उवविट्ठो देसणं सुणइ ॥१६७॥ अह सीलमई पुच्छइ भयवं! किं अज्जियं मए पुविं। जं चइडं बहुवित्तं कयाइ उवयाइयसयाई ॥१६८॥ तहवि न जाओ पुत्तो जाया सयमेव तयणु बहुपुत्ता । मज्झ अणिच्छंतीइ |वि तह जिणधम्मो मए पत्तो ॥१६९॥ तो भणइ गुरू इहयं भरहे वासम्मि कंचणपुरम्मि । धणवई णामा णारी कम्मयरी आसि अइदुग्गा ॥१७०॥ अह तत्थ इन्भगिहिणी लच्छी णामेण तीइ गिहबाहिं । इक्कारसरयणजुओ कहिं पि पडिओ पवरहारो ॥१७१॥ दट्टण तयं गिण्हित्नु धणवई परधणम्मि लुद्धमणा । णियगेहे गंतूणं संगोवइ एगदेसम्मि ॥१७२॥ लच्छी| उण तं हारं णटुं णाऊण सुण्णवुण्णमणा । कोलाहलं करती सवत्थ गवेसए दुहिया ॥१७३॥ कहमवि तं अलहंती रुयमाणी ॥१३०॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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