________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सज्जं । गिहिणो तं न आयक्खे भूआऽहिगरणं पयं ॥ ८३ ॥ तं पुण भद्दे ! णिसुणसु दंसणमूलं जिणिंदवरधम्मं । नीसेसदुक्खदलणं संजणणं सङ्घसुक्खाणं ॥ ८४ ॥ जियरागदोसमोहो देवो देबिंदबिंदकयसेवो । पंचसमिया तिगुत्ता सुसाहुणो चिय सया गुरुणो ॥ ८५ ॥ जीवाजीवाइपयत्थसत्थसद्दहणसंगओ धम्मो । एयं चिय सम्मत्तं गिहिधम्मं सुणसु तुममित्तो ॥ ८६ ॥ पाणिवहमुसावाए अदत्तमेहुणपैरिग्गहे चैव । दिसिंभोगदंडसमइयदे से तह पोसहविभागे ॥८७॥ इय गिहिधम्मं सम्मं कुणंति जे भावओ भवविरत्ता । सुरनरसुहाइ भुत्तुं ते जीवा जंति णिवाणं ॥ ८८ ॥ तो सीलमई जंपइ गहिए धम्मे इमम्मि किह भयवं ! कुलदेवयाइ पूयं काहमहं ? तो गुरू भइ ॥ ८९ ॥ सिवसुहकरं जिनिंदं पूइय को णाम पूअए अण्णं । संपत्ते कप्पदुमे किं एरंडं महइ कोइ ? ॥९०॥
अवि य-सयं सुकयं दुक्कयं मुत्तुं तुट्ठो जियाण रुट्ठो वि। सको वि न सकइ काउ किंचि सा केरिसी विरई ? ॥ ९१ ॥ किंच - जीवेण जमिह भद्दे ! सुभमसुभं वा कयं पुरा कम्मं । तं तेणऽणुभवियवं विहलो पुत्ताइवामोहो ॥९२॥ संसारम्मि अनंते के के पुत्ताइणो न संपत्ता | अहवा जाएहि वि कोइ तेहि विहिओ न साहारो ॥९३॥ जे इहभवे वि णेवोवयारिणो आवयाइ पडियाणं । को सद्दहिज्ज ते अण्णजम्मउवयारकरणम्मि ॥ ९४ ॥ इहपरभवे य एसो धम्मो पुण वंछियत्थदाणखमो । तो भद्दे ! तत्थ सया हुज्जसु अच्चतमुज्जुत्ता ॥९५॥
किंबहुना ? - तं णत्थि जं न सिज्झइ मणिच्छियं इक्कमाणसकएणं । जिणधम्मेणोहामियचिंतामणि कप्परुक्खेण ॥ ९६ ॥
१ ओहामिय० अभिभूत ।
For Private and Personal Use Only