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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदसणा-IIतुच्छप्पयंपिरो णवमओ य अइचवलो । दसमो परिमियचारी न कया वि हु आवयं पत्तो ॥६७॥ इकारसमो उ सुओ|| टू मूलुद्दिट्ठः चरियम्मिा बाढं सावजवजणुजुत्तो । णवरं वागी भोगी य णेव लाभाइपरिहीणो ॥६८॥ इय भयवं! मज्झ सुआ सबे वि विभिण्ण-18| प्पबंधप्प वित्तिणो जाया । साहेसु कस्स कम्मस्स पुषजणियस्स उदएणं ॥६९॥ तो णिम्मलदंतफुरंतकतिपडलेण धवलयंतु छ । गय- रूवगनाम ॥१२७॥ णाभोअं भुवणिक्कबंधवो भणइ भो! सुणसु ॥७०॥ इह चेव भरहवासे मज्झिमखंडम्मि मगहविसयम्मि । कार्यदिपुरीए | सोलसमो | अत्थि सावओ सिट्टिसिरिपुंजो ॥७१॥ सीलमई से भज्जा विणयसुसज्जा पवण्णगुरुलज्जा । तीए य णत्थि पुत्तु त्ति अण्णया उद्देसो। दछु तं विमणं ॥७२॥ सिट्ठी तं पइ जंपइ अलंघणिज्जं पुराकयं कम्मं । ण य किंचिवि पुत्तेहिं तहवि न सा मुंचए खेयं ॥७३॥ तो देवदेविमाईण कुणइ उवयाइयाइ विविहाइ । एक्कारसण्हमिक्किक्कवच्छरं गुरुविभूईए ॥७४॥ सहिओ गुरुयकिलेसो वित्तं वइयं न पाविओ पुत्तो । अजरामरत्तलोभा भुत्तो काउं न तं पत्तं ॥७५॥ अह अण्णदिणे तीइ गिहम्मि सिरिधम्म-12 घोससूरीणं । सीसा सुट्टवउत्ता भिक्खट्ठा आगया दुण्णि ॥७६॥ तो अब्भुट्ठित्ता पुण पणमित्ता तीइ पुच्छिया एयं ।। भयवं! कहेह किं मह होही पुत्तो अपुत्ताए ? ॥७७॥ अह ते भणंति मुणिणो भद्दे ! गिहमागयाण साहूणं । मिक्खाविहिं पमुत्तुं वुत्तुं णो कप्पए अण्णं ॥७८॥ अण्णं च अम्ह गुरुणो ससमयपरसमयमुणियपरमत्था । दवाइचउक्कविऊ कजाऽकज्ज वि याणंति ॥७९॥ पडिलाभिया य तत्तो सीलमईए विसुद्धसद्धाए । फासुयएसणिएणं ते मुणिणो भत्तपाणेणं ॥८०॥ तो ॥१२७॥ बीयदिणे परिवारसंजुया सा गया गुरुसमीवे । ते णमिय तयं पुच्छइ अत्थी जं पिच्छइ न दोसं ॥८१॥ गुरुणो भणंति भद्दे ! ४ जईण सावजवजणरयाणं । परउवयारपराण वि वुत्तुं पि न कप्पए पावं ॥८२॥ जओ नक्खत्तं सुमिणं जोगं णिमित्तमंतभे-12 ***NASSAUSAINST For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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