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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणाचरियम्मि ॥ १२८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इय सोउं गुरुवयणं णिच्चलचित्ता गहित्तु गिहिधम्मं । सीलमई तुट्टमणा सपरियणा तो गया गेहे ॥९७॥ सिरिपुंजसिडि पुरओ णियवत्तंतं कहेइ सा सवं । सिट्ठी वि भणइ धण्णा कयरण्णा तंऽसि जेण पिए ! ॥ ९८ ॥ सुलहा णरवररिद्धी सुरवररिद्धी वि होइ इह सुलहा । दुलहो पुण जीवाणं जिनिंदवरदेसिओ धम्मो ॥ ९९ ॥ ता एयम्मि पमाओ णिमेसमित्तं पि नहु विहेयबो | चिंतामणिव दुलहे तहत्ति पडिवज्जए सा वि ॥१००॥ तो ताइं दो वि देवं तिक्कालं पइदिणं पि पूर्वति । आवस्स| याइकिरिया कुणंति तह उभयसंझं पि ॥ १०१ ॥ तिविहं पि दिंति दाणं कुणंति साहम्मियाण वच्छलं । पालंति णिरइयारं गिहिधम्मं इक्कचित्ता ॥ १०२ ॥ अह सा सीलमईइ वि अमहिज्जंती कयाइ परिकुविया । कुलदेवया पर्यपइ णिसाइ होऊण पञ्चक्खं ॥ १०३ पाविदुट्ठधिट्ठे ! णट्ठविणट्ठाऽसि मे अपूअंती । सयकालपूइयं पि हु न भविस्ससि संपयं पावे ! ॥ १०४ ॥ इय जंपिरीइ तीए घोरागारा करालकरवाला । दारुणकयट्टहासा मुक्का वेयालसंघाया ॥ १०५ ॥ तह डमडमंतडमरुयकरालणरसिरकवालकलियाओ । कत्तियकराउ कूराउ डाइणीउ पयडियाओ ॥ १०६ ॥ असिमसिकसिणसरीरा फारफडाडोवपुरियफुक्कारा । चलगइलुलियदुजीहा णिदंसिया भीसणभुअंगा ॥१०७॥ अइकुडिलकढिणदाढा सुतिक्खकक्खडणहा अरुणणयणा । दूरवियारियवयणा विहिया पंचाणणा समुहा ॥ १०८ ॥ ते सधे सवत्तो सीलमई भेसयंति समकालं । तालता तज्जंता गजंता पलयजलयब ॥ १०९ ॥ तहवि हु सा अक्खुहिया महासई पवरसत्तसंजुत्ता । चिट्ठइ एगग्गमणा सुमरंती | पंचणवकारं ॥ ११०॥ तत्तो खरयरसंभूअभूरिरोसाइ देवयाइ इमं । पुणरवि वृत्ता एवंठिए वि जइ मे णमसि सुद्दे ! ॥ १११ ॥ ता मुंचामि तुममहं महंतमिहरा अणत्थसंघायं । दच्छिहिसि अचिरेण चिय सीलमईए तओ वुत्ता ॥ ११२ ॥ भद्दे ! किमे For Private and Personal Use Only मूलुद्दिट्ठ|प्पबंधप्प रूवगनाम सोलसमो उद्देसो । ॥ १२८ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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