SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा-1 अविणयमई अलज्जो दुस्सीलो गुरुजणेसु पडिकूलो । अणयरओ जत्थ जणो सो एसो वट्टए कालो ॥५२॥ एयारिसे कराले हैं। धाईसुयचरियम्मिा कलिकाले गलियसयलगुणजाले । धम्ममइवजिए पावकरणपवणे वि वस॒ते ॥५३॥ के वि पुणो भवजिया अज्जवि णाया- महसेणप्प दगएण दवेण । भत्तिभरणिभरमणा जिणभवणाई करावेंति ॥५४॥ अजवि चउगइसंसारभीरुया जिणवराण बिंबाई ।। बोहणनाम ॥१२३॥ दाऊण पउरदवं मणोहराई करावेंति ॥५५॥ अज्जवि विचित्तपूयाबलिजत्ताण्हवणगेयपिच्छणयं । सुविहीइ महापुरिसा कुणंति पणरसमो तित्थुण्णइणिमित्तं ॥५६॥ अज्जविणाणाविहभक्खभोजपमुहाइ साहुदाणाई । इच्छाइ दिति भावुल्लसंतगत्ता महासत्ता॥५७॥ | उद्देसो। है अण्णं च-कालाइदोसओ जइवि कहवि दीसंति तारिसा न जई । सवत्थ तहवि णत्थि त्ति णेव कुजा अणासंसं ॥५८॥ अजवि चएवि सुकलत्तपुत्तमित्ताइसंपयं दिक्खं । अवहत्थियकलिकाला भवभीया के वि गिण्हति ॥५९॥ कुग्गहकलंकरहिया जहसत्तिं जहागर्म च जयमाणा । जेण विसुद्धचरित्त त्ति वुत्तमरिहंतसमयम्मि ॥६०॥ अज्जवि तिण्णपइण्णा गरुयभरुषहणपञ्चला लोए। दीसंति महापुरिसा अक्खंडियसीलपब्भारा ॥६१॥ अज्जवि तवसुसियंगा तणुयकसाया जिइंदिया धीरा । दीसंति जए जइणो वसहहिययं वियारंता ॥२॥ अजवि वयसंपत्ता छज्जीवणिकायरक्खणुजुत्ता । दीसंति तवस्सिगणा विकहविरत्ता सुउज्जुत्ता ॥६॥ अज्जवि दयखंतिपइट्ठियाइ तवणियमसीलकलियाइ । विरलाइ दूसमाए दीसंति सुसाहुरयणाई ॥६॥ इय जाणिऊण एवं मा दोसं दूसमाइ दाऊण । धम्मुज्जमे विसीयह अज्जवि धम्मो जए जयइ ॥६५॥ ता तुलियणियबलाणं सत्तीइ जहागमं जयंताणं । संपुण्ण च्चिय किरिया दुप्पसहंताण साहणं ॥६६॥ ॥१२३॥ अवहत्थिय० अपहस्तित-परित्यक्त इति । २ पञ्चल समर्थ । ARSASHISASSIST * For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy