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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- चरियम्मि ॥३॥ चंपगलय त्ति जपतो । नरसुरसिवसुहहे उं, वियरइ सो धम्मलाभं से ॥६॥ नियनामसवणसंजायविम्हया सावि सायरं कहाबंधपुरओ। कयकर अंजलिउडा, उवविट्ठा सुद्धमहिवट्टे ॥६५॥राया उण महसेणो, तीए रूवेण मोहिओ अहियं । किंकिलिलयंत- नामो पढरिओ, तं पिच्छइ सुणइ मुणिवयणं ॥६६॥ दट्टणं महसेणं, ओहिनाणेण मुणिय तच्चरियं । तप्पडिवोहणहेलं, भणइ मुणी/मो उद्देसो। एरिसं वयणं ।।६७॥ अइदुलहं मणुयत्तं, भद्दे! चंपगलए ! इमं लहिउं । धम्मकहा कायवा, विकहा पुण दूरओ वज्जा ६८॥राइभित्तंजणवैयकहा न सोअबिया न कहियवा । धम्मकहाओ चउद्धा, अक्खेवणिमाइ कहियवा ॥६९॥ गंभीरमहुरसद्दा, सुजुत्तिजुत्ता अपुवचित्तत्था । अक्खिप्पइ जीइ जणो, जिणवयणे सा कहा पढमा ॥७॥ जं सुणमाणो जीवो, परववएसेण कुसमएहिंतो। विक्खिप्पए विरजइ, सयंपि विक्खेवणी एसा ॥७१॥ जं सुणिऊण सयणो, सिवमयलमणंतमक्खयमवाहं । अहिलसइ मुक्खसुक्खं, सा खलु संवेइणी भणिया ॥७२॥ बहुआहिवाहिगेहा, जाइजरामरणदारुणाओ | य । जं निविज्जइ जीवो, भवाओ निवेइणी सा उ ॥७३॥ चऊहि इमाहि कहाहिं, विणीयपरिसाइ सोउकामाए । जइणा गीयत्थेणं, जिणधम्मो होइ कहियवो ॥७॥ दु भणियं च-भवसयसहस्समहणो, विबोहओ भवियपुंडरीयाणं । धम्मो जिणपण्णत्तो, पगप्पजइणा कहेयन्वो ॥७५॥ इह तिण्णि कहा कारणभूया तुरिया उ कजभूअ त्ति । वेरग्गभावजणणी, निसुणह निवेइणी तम्हा ॥७६॥ तथाहि-जीवो कालो कम्म, अणाइ तिहुयणगुरूहिं निद्दिढं । कालस्स इमं विस्सं, उवयारे वट्टए सवं ॥७७॥ जीवो देहं ॥३॥ पावइ, अणाइनियकम्मसंगदोसेणं । पुढवीजलजलणवाऊवणस्सईसु भमइ तत्तो ॥७८॥ सुइरं थावरकाए, जीवो तो कहवि For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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