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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है लायण्णरूवसोहग्गसंगया जेण निम्मिया एसा । गुणकित्तणे समत्थो, इमीइ नारीइ जइ सो वि ॥५०॥ अह सा कयमुह कोसा, सिरिमुणिसुव्वयजिणं गरुयहरिसा । एगग्गमणा पूअइ, सुगंधिवरसेयकमलेहिं ॥५१॥ उचियट्ठाणम्मि ठिया, विहिपुवं वंदिऊण जिणनाहं । भत्तिब्भरनिभरंगा, एवं थोउं समाढत्ता ॥५२॥ । तंजहा-संपत्तविमलकेवल !, केवलबलहणियतिहुयणतमोह !। मोहमहाभडभंजय !, जय जय मुणिसुबयजिणिंद !॥५॥ जेहिं न तुह मुहकमलं, पलोइयं पुलइएहिं कइआवि । पिक्खंति परमुहाई, सयावि ते हीणदीणमुहा ॥५४॥ जेहिं न तुह दुपयकमलं, पणयं भत्तीइ ते नमंति पए । सबेसिपि जणाणं, पवण्णपाणामियवय व ॥५५॥ तिहुयणपहुणो पहु! नुह, सेव विहिया न जेहि मूढेहिं । ते जिय जियं ! भणंता, सामण्णजणपि सेवंति ॥५६॥ तुममच्चिओ न जेहिं, न संथुओ जीड जेहिट हाय न दिट्टो । ताणि नणु पाणिवाणीनयणाणि जणाण विहलाई ॥५७॥ मणवयतणुहिं जेहिं, पुर्वि नाराहिओ तुम नाह ! । ते आहिवाहिविहुरा, सहति दुस्सहं दुहं सुइरं ॥५८॥ तं संपइ मह माया, ताओ बंधू पहू गुरू सरणं । तं पड़ एगग्गस्स उ, जीयस्स जं होइ तं होउ ॥५९॥ सिरिमुणिसुबयसामिय !, देविंदमुणिंदनमियकमकमल ! । खमिउं अविणयनिवहं, हावियरसु लहु मज्झ सिवसुक्खं ॥६०॥ इय थोऊण जिणिंद, भाउअ ! जा जिणहराओ नीहरइ । ता एगम्मि पएसे, पिच्छइ सा महरिसिं एगं ॥६॥ __ सोय केरिसो-चंदुव सोमलेसो, सूरुव फुरंत उग्गतवतेओ। धम्मुव मुत्तिमंतो, उवविट्ठो वरसिलावट्टे ॥६२॥ दट्टणं है परितुट्ठा, गंतुं सा तत्थ भत्तिसंजुत्ता । तं चंडवेगसाह, वंदइ विहिणा सबहुमाणं ॥६३॥ अइसयनाणसमग्गो, मुणी वि| BORGANISARGICALCANARASI 44444 For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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