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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **** * पावइ तसत्तं । लहुकम्मो य तओ जइ पावइ पंचिंदियत्तं च ॥७९॥ मणुअत्तं च तओ जइ, पुण्णविहूणो न अजखित्तम्मि।लद्धेवि अज्जखित्ते, न कुलं जाई बलं रूवं ॥८॥ एयम्मि वि संपत्ते, अप्पाऊ होइ अहव वाहिल्लो। दीहाउओ निरोगो, हविज्ज जइ पुण्णजोगेणं ॥८१॥ पत्तेवि निरोगत्ते, आलस्साईहिं णवरिहेऊहि । न य पावइ जिणधम्म, विवेयपरिवजिओ जीवो ॥८२॥ हालद्भूण वि जिणधम्म, दंसणमोहणियकम्मउदएणं । संकाइकलुसियमणो, जिणवयणं नेय सद्दहइ ॥८३॥ अहिगयसम्मत्तो वि हु, उस्सग्गववायसंगयं सुत्तं । नाणावरणस्सुदए, संसिजं तं न बुज्झेइ ॥८४॥ अह संसियं पि बुज्झइ, सयं पि सद्दहइ वोहए अन्नं । चारित्तमोहदोसेण, संजमं न य सयं कुणइ ॥८५॥ खीणे चरित्तमोहे, विमलतवं संजमं च जो कुणइ । सो दीपावइ मुत्तिसुहं, इय भणियं धुयकिलेसेहिं ॥८६॥ चुल्लगपासंगधन्ने, जूए रयणे य सुमिणचक्के य । चम्म गे परमाणू , दस दिटुंता सुयपसिद्धा ॥८७॥ एएहिं इमं सवं, मणुयत्ताई कमेण दुलंभं । लद्धं करेह सहलं, काऊण जिणिंदवरधम्मं ॥८८॥ एवं जिणधम्मकहा, तह जिणमुणिसंघजिणगिहाणुगया । भावेण कीरमाणी, निहणइ चिरसंचियं पावं ॥८९॥ इय सिरिसुदरिसणाए, कहाइ बुहकमलदिणयरपहाए । नामेण कहाबंधो, समथिओ पढमउद्देसो ॥९०॥ [ पढमो उद्देसओ सम्मत्तो] अह बीओ उद्देसो।। भाउअ ! सोऊण इम, भणियं चंपगलयाइ केण इमं । जिणभवणं कारवियं, तो भणइ स चण्डवेगमुणी ॥१॥ एयं विरजिणभवणं, कारवियं जीइ नियगभावेणं । देवीसुदंसणाए, तीए चरियं निसामेह ॥२॥ तंजहा-इह अस्थि जंबूदीवे, भारहखित्तस्स दाहिणड्डम्मि । धम्मत्थकाममोक्खाण, कारणं मज्झिमं खण्डं ॥२॥ तस्स य COCCARRIORMANCCCCCC SOUSSES For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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