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सुदंसणाचरियम्मि
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तु चरणमिणं ॥ ६०१ || अह पंचमं चरितं तं पि दुहकसायउवसमखए वा । पढमं अंतमुहुत्तं बीयं पुण पुत्रकोणं ॥ ६०२॥ सम्मसुयदेसविरइप्पडिवत्ती इह असंखवाराओ । अट्ठभवा चारित्ते अणंतकालं पि दवसुए || ६०३ ॥ तिण्ह सहस्सपुहुत्तं सयप्पुहुत्तं च होइ विरईए । एगभवे आगरिसा दुरणुचरंतेण चारित्तं ॥ ६०४ || अहवऽण्णहा चरित्तं मूलगुणुत्तरगुणेहिं दुहभेयं । मूले पंचमहायराईभोयणविरमणं च ॥ ६०५ || उत्तरगुणा इहं पुण पडिलेहपमज्जणाइया बहवे । अहव दुहा चारितं | भेएणं चरणकरणाणं ॥ ६०६ ॥ वैयसमणधम्मसंजमवेयावच्चं च बंभंगुत्तीओ। णाणाइतियं तैवकोर्हेनिग्गहाई चरणमेयं ॥ ६०७॥ | पिंडेविसोही समिई भावणपेंडिमा य इंदियनिरोहो । पंडिलेहणगुत्ती उण अभिग्गहे चेव करणं तु ॥ ६०८ ॥ अहवा दुविहं भेयं| समिईगुत्तीहि संगयं चरणं । इरियाइपंचसमिईड मणमाइतिण्णि गुत्तीओ ॥ ६०९ ॥ इय सवं पि हु चरणं समग्गसावज्ज| जोगमुक्काणं । समभावाण मुणीणं गिहीण पुण देसचरणमिणं ॥ ६१०|| सम्म हंसणजुत्तो गिण्हंतो विरइमप्पसत्तीए । एगवयाई चरिमो अणुमइमित्तु त्ति देसजुई ॥ ६११॥ दंसणणाणजुओ वि हु न कुणइ कम्मक्खयं चरणरहिओ । णाणरुइजुओ विज्जुव किरियरहिओ अरोगत्तं ॥ ६१२ ॥ केवलणाणे तह खइयदंसणे निरुवमे वि विज्जंते । सिज्झइ न सब संवरचरित्त रहिओ जिओ कइया ॥ ६१३ ॥
किंच - सावज्जकज्जसज्जो आजम्मं णाणदंसणविहीणो । अइरा चरणेण महा बलुब सुगई लहइ जीवो ॥ ६१४ ॥ तहाहि—इह अवरविदेहेसुं खिइपइट्ठियपुराओ सत्थाहो । वाणिज्जेणं चलिओ गिम्हम्मि घणो वसंतपुरं ॥ ६१५॥ १ ग्रहणकर छोड देना । २ अचिरात् जलदी ।
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रयणत्तयरसरूवप्प
रूवग नाम
दसमुद्देसो ।
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