SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणा- उपाडिऊण खित्तं खणेण खीरोदहिजलम्मि ॥४२३॥ अह हरिसविसायजुओ भरहो छायाऽऽयवेण सरउब । पविसित्तु दारयणत्तयचरियम्मिासमोसरणं विहिपुवं वंदइ जिणिंदं ॥४२॥ तो भणइ भुवणनाहो भो भो भवा! इमम्मि भवभवणे । मोहनिसाए अण्णा- स्सरुवप्प दाणणिद्दसुत्तम्मि जियलोए ॥४२५॥ सबत्तो विपलित्ते पमायजलणे कसायखरपवणे । डझंते रयणतिए अत्तहियं सुणह एगग्गा ॥९१॥ रूवग नाम ॥४२६॥णाणेण जग्गिऊणं अममत्तदिणोदयं लहेऊण । उवसमजलेण सिंचह संजमजोगुज्जया अप्पं ॥४२७॥ विज्झावि- दिसमुद्देसो। ऊण एवं संसारपलीवणं अणुविग्गा । पावेह सासयसुहं सिवमयलमणुत्तरं सिग्धं ॥४२८॥ इय पहुकहियं सोउं भरहसुओ उसहसेणअभिहाणो । पुंडरियबीयनामो पहुपासे गिण्हए दिक्खं ॥ ॥४२९॥ पंच य पुत्तसयाई भरहस्स सत्तनत्तुय-18 |सयाई । सेयराहं पबइआ तम्मि कुमारा समोसरणे ॥४३०॥ चुलसीइ तह गणहरा बंभीपमुहा य तह य समणीओ। भहरप्पमुहा सड्ढा सुंदरीपमुहाओ सड्डीओ॥४३११॥ इय पढमसमोसरणे पढमजिणिंदस्स पढमओ संघो । उप्पण्णो तत्थ तओ विहरइ महिमंडलं सामी ॥४३२॥ विहरित्तु पुबलक्खं वाससहस्सूणयं विवोहित्ता । चुलसीइसमणसहसा तिण्णि उ लक्खाउ समणीणं ॥४३३॥ पणसहस तिणि लक्खा सड्डाणं सावियाण पणलक्खा । चउपण्णं च सहस्सा अह अट्ठावयणगे पत्तो ॥४३४॥ संपलियंकनिसण्णो तत्थ पड साहुदससहस्सजुओ। माहस्स बहुलतेरसिदिणम्मि चउद्दसमभत्तेणं ॥४३५॥ पाओवगमनिसण्णो चंदेण अभीइरिक्खजुत्तेणं । कम्मकलंकविमुक्को रिसहजिणिंदो गओ सिद्धिं ॥४३६॥ भरहो पुण पूइत्ता चकं चक्काणुगो भरहखित्तं । सट्ठीइ वाससहसेहि साहिउं सगिहमणुपत्तो ॥४३७॥ वरचकवट्टिभोए भुत्तूणं १ नत्तुभ० पौत्रः। २ शीत्रम् । SAGAUNSALEELSRAELORES ॥२१॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy